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मध्य प्रदेश में अब मतदाता ही चुनेंगे महापौर और अध्यक्ष, मानसून सत्र में आएगा संशोधन विधेयक

भोपाल, मध्य प्रदेश में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष अब सीधे मतदाता चुनेंगे। शिवराज सरकार ने कमल नाथ सरकार के महापौर और अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के फैसले का पलटने के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में संशोधन विधेयक लाने का फैसला किया है। इसके साथ ही चुनाव से छह माह पहले तक ही वार्डो का परिसीमन हो सकेगा। सोमवार को मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की अध्यक्षता में हुई वरिष्ठ सचिव समिति की बैठक में जुलाई में संशोधन विधेयक लाने की अनुमति नगरीय विकास एवं आवास विभाग को दी।

सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस शासनकाल में नगरीय निकाय चुनाव व्यवस्था में जो बदलाव किया था, उसे फिर पुराने स्वरूप में लाने का निर्णय किया है। कमल नाथ सरकार ने नगर पालिका अधिनियम में जनवरी 2020 में संशोधन कर महापौर और अध्यक्ष का चुनाव जनता की जगह पार्षदों के माध्यम से कराने की व्यवस्था लागू की थी। इसके लिए अधिनियम में संशोधन के साथ मध्यप्रदेश नगर पालिका अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के निर्वाचन नियम में भी बदलाव किया गया। साथ ही चुनाव से दो माह पहले तक वार्ड परिसीमन करने और कलेक्टर को चुनाव के बाद पहला सम्मेलन बुलाने का अधिकार दिया था।

मंजूरी मिलने के बाद विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा

भाजपा ने कमल नाथ सरकार के इस फैसले का हर स्तर पर विरोध किया था, लेकिन सरकार ने अध्यादेश के जरिए व्यवस्था में बदलाव किया और फिर विधानसभा में नगर पालिका अधिनियम में संशोधन विधेयक पारित कराकर 27 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई वरिष्ठ सचिव समिति ने पुरानी व्यवस्था फिर लागू करने के लिए अधिनियम में संशोधन के लिए विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत करने की अनुमति नगरीय विकास एवं आवास विभाग को दे दी है। अब विभाग संशोधन विधेयक का प्रस्ताव कैबिनेट में रखेगा और मंजूरी मिलने के बाद इसे विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा।

चुनाव से छह माह पहले रक जाएगा परिसीमन

प्रस्तावित नई व्यवस्था के तहत चुनाव से छह माह पहले निकाय व वार्ड की सीमा का परिसीमन रक जाएगा। इसके बाद न तो नए निकाय का गठन होगा और न ही वार्ड की संख्या बढ़ेगी। कमल नाथ सरकार ने इस अवधि को घटाकर दो माह कर दिया था। वहीं, चुनाव के बाद पहला सम्मेलन राज्य निर्वाचन आयोग ही बुलाएगा। इससे ही निकाय के पांच वर्षीय कार्यालय की गणना होगी।

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