जो देश के हित में ना जले ,
वह दीप कहो किस काम का।
संघर्ष करो ए वीर पुरुष ,
यह समय नहीं आराम का ।।
क्या चलती नहीं तुम्हारी आंखें ,
ये जलती चिताए देखकर ।
क्या उठता नहीं मन में क्रोध ,
ये दीन दशाएं देखकर ।।
क्या बहता नहीं तेरी रगों में ,
वो कर्ज मां के नाम का ।
संघर्ष करो ए वीर पुरुष ,
ये समय नहीं आराम का ।।
उठाकर शस्त्र जो तुम ,
वीर पर बढोगे ।
करोगे देश सेवा ,
सदा संयम धरोगे ।।
कर्म करो अन्तिम सांस तक ,
न करो ध्यान परिणाम का ।
संघर्ष करो ए वीर पुरुष ,
यह समय नहीं आराम का ।।
कवयित्री- शिवानी रजक