नौ अगस्त को ही अनुसूचित जाति वर्ग ने भारत बंद का आह्वान किया है. चुनाव से पहले इस बंद को कांग्रेस की दलित राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है
तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने दो सौ सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. राज्य की आदिवासी सीटों को जीते बगैर पार्टी इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती है. राज्य के आदिवासी वोटरों को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने नौ अगस्त को मनाए जाने वाले विश्व आदिवासी दिवस पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रम तय किए हैं. राज्य के सभी आदिवासी विकास खंड़ों में यह कार्यक्रम होंगे. नौ अगस्त को ही अनुसूचित जाति वर्ग ने भारत बंद का आह्वान किया है. चुनाव से पहले इस बंद को कांग्रेस की दलित राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. आदिवासी भी कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है.दलित-आदिवासी के भरोसे है कांग्रेसराज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें 35 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए एवं 47 जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. पिछले ड़ेढ़ दशक में इन दोनों वर्गों पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है. पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग की कुल 47 सीटों में से महज 15 सीटों पर ही कांग्रेस को सफलता मिली थी. अनसूचित जाति वर्ग की कुल 35 सीटों में से मात्र चार कांग्रेस के पास हैं. तीन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के विधायक हैं. भारतीय जनता पार्टी के पास अनुसूचित जाति वर्ग की 28 और जनजाति वर्ग की 32 सीटें हैं.पिछले विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर अपेक्षित सफलता न मिलने के कारण कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस की सफलता आरक्षित सीटों पर बुहत कुछ निर्भर करती है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के पास ही कोई आदिवासी चेहरा नहीं है. हर चुनाव में आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कांग्रेस में उठती रहती है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने कांतिलाल भूरिया को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर आदिवासी सीटों पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश की थी. कांग्रेस का पासा उल्टा पड़ गया था. कांतिलाल भूरिया के संसदीय क्षेत्र झाबुआ में ही कांग्रेस सभी आरक्षित सीटें हार गईं थी. लोकसभा चुनाव में कांतिलाल भूरिया खुद चुनाव हार गए थे.राज्य में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के अलावा तीस से अधिक सामान्य सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर भी सहरिया आदिवासी निर्णायक भूमिका में होते हैं. कोलारस विधानसभा के उप चुनाव में सहरिया आदिवासियों को लुभाने के लिए ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर आदिवासी परिवार को एक हजार रूपए नगद देने की घोषणा की थी. सरकार ने घोषण पर अमल भी किया है. राज्य में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 21 प्रतिशत से अधिक है. कांग्रेस अब तक आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाई है. राज्य में कुल 89 आदिवासी विकासखंड हैं. नौ अगस्त को इन विकासखंडों में सरकार ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है. सरकार के प्रवक्ता जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि सरकार इस मौके पर आदिवासी वर्ग के लिए किए गए कार्यों का लेखा-जोखा रखेगी.आदिवासियों पर है बीजेपी का जोरभारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जाति वर्ग के बजाए आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस कर रही है. अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षित क्षेत्रों में बीजेपी अपने आपको बेहतर स्थिति में मानती है. पार्टी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस और बीएसपी के समझौते के बाद भी बीजेपी की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आना है. कांग्रेस की पूरी कोशिश दलितों की नाराजगी को भुनाने की है. राज्य में दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान कुछ इलाकों में जमकर हिंसा हुई थी. पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप के सैकड़ों मामले थानों में दर्ज किए हैं. नौ अगस्त का भारत बंद मुख्यत: इन मामलों को वापस लेने के लिए है. 22 दलित संगठनों ने बंद के समर्थन का ऐलान किया.आरपीआई के महामंत्री मोहनलाल पाटिल कहते हैं कि यदि उनकी पार्टी बंद का समर्थन नहीं करेगी, तो हम किसी और बैनर से समर्थन करेंगे. दलितों की नाराजगी की दूसरी वजह पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को लेकर है. मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट के आदेश के बाद से पदोन्नति में आरक्षण बंद है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार यह आश्वासन दे रहे हैं कि वे पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए नए नियम बनाएंगे. मुख्यमंत्री के बयानों से सामान्य वर्ग नाराज है. दलित वर्ग मुख्यमंत्री की बात पर भरोसा करने को तैयार नहीं है. कांगे्रस इसका लाभ चुनाव में उठाना चाहती है. नौ अगस्त के भारत बंद के लिए दलित कर्मचारियों ने अवकाश के आवेदन अपने विभागों में देना शुरू कर दिए है. अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के संगठन अजाक्स के संरक्षक आईएएस अधिकारी जेएन कंसोटिया ने कहा कि भारत बंद को उनके संगठन का समर्थन नहीं है. दलित आंदोलन के असर को कम करने के लिए ही सरकार ने नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर बड़े पैमान पर सरकारी कार्यक्रम आयोजित किए जाने की रूपरेखा तैयार कर ली है. आदिवासी जिलों में कार्यक्रम के लिए मंत्रियों को तैनात किया गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद झाबुआ के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. प्रदेश में पहली बार इस तरह का कार्यक्रम किया जा रहा है.जयस संगठन है बड़ी रूकावटचुनाव में भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा दिक्कतें कांग्रेस के सामने आ रही हैं. महकौशल क्षेत्र में आदिवासी संगठन जयस सक्रिय है. जयस ने 29 जुलाई से आदिवासी यात्रा शुरू की है. यात्रा हर जिले में जा रही है. जयस की मुख्य मांग पांचवी अनुसूची को लागू करने की है. दूसरी मांग वन अधिकार कानून के अक्षरश: पालन की है. बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले दो लाख से अधिक आदिवासियों के दावे को मान्य करते हुए उन्हें वन अधिकार कानून के तहत पट्टे दिए थे. जयस संगठन के सक्रिय होने से चिंता कांग्रेस की बढ़ी है.कांग्रेस को नुकसान गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी होता है. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव मंडला, सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में अधिक है. छिंदवाड़ा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का प्रभाव क्षेत्र है. वे चुनाव से पहले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से समझौता करना चाहते हैंं. जयस की सक्रियता ने कांग्रेस के सामने नई समस्या खड़ी कर दी है. आदिवासी वोटों के विभाजन की स्थिति में बीजेपी को बड़ा फायदा हो सकता है. बीजेपी सभी संभावनाओं को ध्यान में रखकर हर कदम उठा रहीहै. नौ अगस्त का दिन प्रदेश में दलित और आदिवासी राजनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है.
तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने दो सौ सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. राज्य की आदिवासी सीटों को जीते बगैर पार्टी इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती है. राज्य के आदिवासी वोटरों को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने नौ अगस्त को मनाए जाने वाले विश्व आदिवासी दिवस पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रम तय किए हैं. राज्य के सभी आदिवासी विकास खंड़ों में यह कार्यक्रम होंगे. नौ अगस्त को ही अनुसूचित जाति वर्ग ने भारत बंद का आह्वान किया है. चुनाव से पहले इस बंद को कांग्रेस की दलित राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. आदिवासी भी कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है.दलित-आदिवासी के भरोसे है कांग्रेसराज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें 35 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए एवं 47 जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. पिछले ड़ेढ़ दशक में इन दोनों वर्गों पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है. पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग की कुल 47 सीटों में से महज 15 सीटों पर ही कांग्रेस को सफलता मिली थी. अनसूचित जाति वर्ग की कुल 35 सीटों में से मात्र चार कांग्रेस के पास हैं. तीन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के विधायक हैं. भारतीय जनता पार्टी के पास अनुसूचित जाति वर्ग की 28 और जनजाति वर्ग की 32 सीटें हैं.पिछले विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर अपेक्षित सफलता न मिलने के कारण कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस की सफलता आरक्षित सीटों पर बुहत कुछ निर्भर करती है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के पास ही कोई आदिवासी चेहरा नहीं है. हर चुनाव में आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कांग्रेस में उठती रहती है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने कांतिलाल भूरिया को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर आदिवासी सीटों पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश की थी. कांग्रेस का पासा उल्टा पड़ गया था. कांतिलाल भूरिया के संसदीय क्षेत्र झाबुआ में ही कांग्रेस सभी आरक्षित सीटें हार गईं थी. लोकसभा चुनाव में कांतिलाल भूरिया खुद चुनाव हार गए थे.राज्य में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के अलावा तीस से अधिक सामान्य सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर भी सहरिया आदिवासी निर्णायक भूमिका में होते हैं. कोलारस विधानसभा के उप चुनाव में सहरिया आदिवासियों को लुभाने के लिए ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर आदिवासी परिवार को एक हजार रूपए नगद देने की घोषणा की थी. सरकार ने घोषण पर अमल भी किया है. राज्य में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 21 प्रतिशत से अधिक है. कांग्रेस अब तक आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाई है. राज्य में कुल 89 आदिवासी विकासखंड हैं. नौ अगस्त को इन विकासखंडों में सरकार ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है. सरकार के प्रवक्ता जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि सरकार इस मौके पर आदिवासी वर्ग के लिए किए गए कार्यों का लेखा-जोखा रखेगी.आदिवासियों पर है बीजेपी का जोरभारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जाति वर्ग के बजाए आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस कर रही है. अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षित क्षेत्रों में बीजेपी अपने आपको बेहतर स्थिति में मानती है. पार्टी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस और बीएसपी के समझौते के बाद भी बीजेपी की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आना है. कांग्रेस की पूरी कोशिश दलितों की नाराजगी को भुनाने की है. राज्य में दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान कुछ इलाकों में जमकर हिंसा हुई थी. पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप के सैकड़ों मामले थानों में दर्ज किए हैं. नौ अगस्त का भारत बंद मुख्यत: इन मामलों को वापस लेने के लिए है. 22 दलित संगठनों ने बंद के समर्थन का ऐलान किया.आरपीआई के महामंत्री मोहनलाल पाटिल कहते हैं कि यदि उनकी पार्टी बंद का समर्थन नहीं करेगी, तो हम किसी और बैनर से समर्थन करेंगे. दलितों की नाराजगी की दूसरी वजह पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को लेकर है. मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट के आदेश के बाद से पदोन्नति में आरक्षण बंद है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार यह आश्वासन दे रहे हैं कि वे पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए नए नियम बनाएंगे. मुख्यमंत्री के बयानों से सामान्य वर्ग नाराज है. दलित वर्ग मुख्यमंत्री की बात पर भरोसा करने को तैयार नहीं है. कांगे्रस इसका लाभ चुनाव में उठाना चाहती है. नौ अगस्त के भारत बंद के लिए दलित कर्मचारियों ने अवकाश के आवेदन अपने विभागों में देना शुरू कर दिए है. अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के संगठन अजाक्स के संरक्षक आईएएस अधिकारी जेएन कंसोटिया ने कहा कि भारत बंद को उनके संगठन का समर्थन नहीं है. दलित आंदोलन के असर को कम करने के लिए ही सरकार ने नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर बड़े पैमान पर सरकारी कार्यक्रम आयोजित किए जाने की रूपरेखा तैयार कर ली है. आदिवासी जिलों में कार्यक्रम के लिए मंत्रियों को तैनात किया गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद झाबुआ के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. प्रदेश में पहली बार इस तरह का कार्यक्रम किया जा रहा है.जयस संगठन है बड़ी रूकावटचुनाव में भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा दिक्कतें कांग्रेस के सामने आ रही हैं. महकौशल क्षेत्र में आदिवासी संगठन जयस सक्रिय है. जयस ने 29 जुलाई से आदिवासी यात्रा शुरू की है. यात्रा हर जिले में जा रही है. जयस की मुख्य मांग पांचवी अनुसूची को लागू करने की है. दूसरी मांग वन अधिकार कानून के अक्षरश: पालन की है. बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले दो लाख से अधिक आदिवासियों के दावे को मान्य करते हुए उन्हें वन अधिकार कानून के तहत पट्टे दिए थे. जयस संगठन के सक्रिय होने से चिंता कांग्रेस की बढ़ी है.कांग्रेस को नुकसान गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी होता है. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव मंडला, सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में अधिक है. छिंदवाड़ा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का प्रभाव क्षेत्र है. वे चुनाव से पहले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से समझौता करना चाहते हैंं. जयस की सक्रियता ने कांग्रेस के सामने नई समस्या खड़ी कर दी है. आदिवासी वोटों के विभाजन की स्थिति में बीजेपी को बड़ा फायदा हो सकता है. बीजेपी सभी संभावनाओं को ध्यान में रखकर हर कदम उठा रहीहै. नौ अगस्त का दिन प्रदेश में दलित और आदिवासी राजनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है.