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विद्यार्थियों को तो हमेशा परीक्षा देनी पड़ती है : डॉ.राठौर

विद्यार्थियों को तो हमेशा परीक्षा देनी पड़ती है : डॉ.राठौर

शिवपुरी शहर के विद्यार्थियों को वर्चुअल रूप से संदेश देते हुए डॉ रामजी दास राठौर पूर्व अतिथि विद्वान शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी ने बताया कि विद्यार्थियों को हर हाल में परीक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए. परिस्थितियां चाहे कितनी ही विषम क्यों ना हो.
प्रकृति का नियम है संघर्षशील ही इस दुनिया में जिंदा रह पाते हैं. हमारे आसपास सदियों से अनेकों बीमारियों ने डेरा डाला है उसके बावजूद भी मानव सभ्यता हमेशा सुरक्षित रही है. समय पर हम शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करते रहे तो हमारे शरीर में किसी भी प्रकार का वायरस जिंदा नहीं रह सकता. हमारा शरीर प्रकृति द्वारा इस तरीके से बनाया गया है कि वह अपनी रक्षा बीमारियों से स्वयं कर लेता है.
वर्तमान में कोरोना वायरस का प्रकोप काफी ज्यादा है भारत देश में जिस समय कोरोना के मामले काफी कम थे,उस समय लॉकडाउन काफी सख्ती से पालन किया जा रहा था.यदि लॉकडाउन एक महीने बाद लगाया जाता तो सभी कक्षाओं की परीक्षाएं समाप्त हो चुकी होती तथा परिणाम भी आ चुके होते लेकिन लॉकडाउन के चलते परीक्षाओं को स्थगित करना पड़ा. लेकिन अब जहां कोरोना के मामले प्रतिदिन 60 हजार के ऊपर आ आ रहे हैं तथा मरने वालों का आंकड़ा 50 हजार को पार कर चुका है तथा देश में कुल मामलों की संख्या 23 लाख के करीब पहुंच चुकी है, उस परिस्थिति में सरकार परीक्षा कराने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है.
हकीकत की दुनिया में जहां सामान्य परिस्थितियां थी उस दौर में भी केवल 10% बच्चे पढ़ने आए और नाम मात्र के शिक्षकों ने अध्यापन कार्य कराया तथा परीक्षाएं चलती रहीं और उसी स्थिति में रिजल्ट बनते रहे.
जबकि हकीकत में देखा जाए तो वास्तविक रूप से कोरोना काल से पूर्व की अध्यापन व्यवस्था में भी सभी कार्य ईमानदारी से किया जाता तो केवल 2 से 5% का रिजल्ट सभी परीक्षाओं का रहता, जिस तरह सीए की परीक्षा का रिजल्ट रहता है.
जहां सब कुछ ऐसा चलता चला रहा है तो आज जब समय की मांग है कि विद्यार्थियो के जीवन के साथ किसी भी स्थिति में खिलवाड़ ना किया जाए उस समय परीक्षाओं को हर हाल में कराना न्याय संगत नहीं है. कोरोना काल की स्थिति को देखते हुए ओपन बुक रक्षा कराने का जो फैसला लिया गया है वह भी कहां तक न्याय संगत है ?
जहां परीक्षार्थी दूसरे शहरों में रह रहे हैं ,ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं, कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, सत्र पहले से ही काफी लेट हो चुका है ,सफ़र करना किसी भी स्थिति में इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित नहीं है.सभी परीक्षार्थियों को पिछले प्राप्त अंकों के आधार पर उत्तीर्ण करते हुए उन्हें आगामी कक्षा में प्रवेश के लिए सुविधा दी जा सकती है.
जहां कोरोना से हाई प्रोफाइल लोग संक्रमित होकर अपनी जान गंवा चुके हैं. उसी स्थिति में एक आम, ग़रीब, ग्रामीण परिवेश के व्यक्ति के बारे में हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि वह इन सब व्यवस्थाओं में संक्रमण का शिकार नहीं हो सकता ?
यदि कोई भी विद्यार्थी परीक्षा के दौरान संक्रमण का शिकार हो गया तो उसके जीवन की रक्षा कैसे की जा सकती है जहां अभी तक कोरोना की किसी भी प्रकार की दवाई उपलब्ध नहीं है.
कोरोना का दौर जिंदगी में अभी चलेगा,लेकिन जानबूझकर जहां संक्रमण का खतरा लगातार बढ़ रहा है उस स्थिति में विद्यार्थियों के जीवन को ध्यान में रखकर के सरकार द्वारा उचित फैसला लेकर समस्त विद्यार्थियों को प्रमोशन देना ही चाहिए.
यदि जिंदा रहेंगे तो जिंदगी में परीक्षाएं चलती रहेंगी, विद्यार्थी पास होते रहेंगे,केवल एकेडमी कक्षा पास करने से नौकरियां नहीं मिलती हैं.नौकरियां प्राप्त करने के लिए अलग से प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं जिनमें विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना पड़ता है ,उसके बाद भ्रष्टाचार के चलते अन्य व्यवस्थाओं में भी उसे अपने आपको साबित करना पड़ता है तब जाकर कोई नौकरी प्राप्त होती है.जहां केवल मात्र डिग्री देने की बात है तो उस स्थिति में विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ ना किया जाए तथा भारत के भविष्य को बचाने के लिए हर संभव सकारात्मक प्रयास करना चाहिए.
शिक्षा नीति पुरानी हो चाहे नई शिक्षा नीति आ रही हो जब तक नीति को अमल में लाने वाले लोग उसको सही ढंग से प्रयोग में नहीं लाएंगे भारत देश के शिक्षित युवा को बेहतर भविष्य देने के सपना देखना बेमानी होगी. अतः भारत का भविष्य हर हाल में सुरक्षित किया जाना चाहिए.भारत देश के हर एक युवा की जिंदगी भारत देश के लिए अमूल्य है.

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