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चुनावी नतीजों ने बढ़ाई कमलनाथ सरकार की चिंता, विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती

भोपाल। लोकसभा चुनावनतीजों ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को भीतर तक हिला दिया है। नरेन्द्र मोदी की सुनामी ने छह माह पहले सत्ता में आई कांग्रेस को ऐसा झटका दिया है कि उससे उबरने में उसे लंबा वक्त लग सकता है। पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गज इस सुनामी के आगे टिक नहीं पाए।
इन नतीजों ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी चिंंता में डाल दिया है। चिंता सरकार के अस्तित्व को लेकर है। कांग्रेस सरकार के गठन के साथ उसके भविष्य को लेकर बयानबाजी करने वाले भाजपा नेताओं के हौंसले सूबे की 29 में से 28 सीट जीतने के बाद और भी ज्यादा बुलंद हो गए हैं। कांग्रेस विधायकों को एकजुट रखने की गरज से मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 26 मई को भोपाल में विधायकों की बैठक भी बुलाई है।
नवंबर 2018 में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल पाया था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 114 जबकि भाजपा को 109 सीटें मिल पायी थी। बहुमत के लिए आवश्यक 116 के आंकड़े को दोनों ही दल नहीं छू पाए थे। तब चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने की चिठ्ठी सौंपकर उसकी सरकार बनाने की राह आसान कर दी। कमलनाथ ने चार निर्दलीय विधायकों में से एक को मंत्री बनाया।
बाकी के विधायक मंत्री बनने के भरोसे बैठे हैं। बचे हुए तीन निर्दलीय में से एक ने अपनी पत्नी को लोकसभा चुनाव लड़ाने का एलान किया तो नाथ ने उसे बुलाकर समझाया और वचन दिया कि लोकसभा चुनाव निपटते ही उसे मंत्री बना दिया जाएगा। सपा और बसपा के लखनऊ में बैठे नेता भी इस मुद्दे पर प्रदेश की कांग्रेस सरकार से नाराज चल रहे हैं। राजनीतिक इस समय जो विधायक आंखें तरेर लेगा उसे मंत्री पद मिल पाएगा।
कांग्रेस को भय यह है कि भाजपा एक दो माह में उसका गेम बिगाड़ सकती हैं। इस भय की बानगी शुक्रवार को उस समय देखने को मिली जब नीमच के एक कांग्रेस विधायक हरदीप सिंह डंग के इस्तीफे की खबर सोशल मीडिया पर वायरल होते ही प्रदेश कांग्रेस एक्टिव हुई और तत्काल उससे संपर्क स्थापित कर खंडन भी वायरल किया गया कि डंग ने इस्तीफा नहीं दिया।
डंग इकलौते सिख विधायक है, इस नाते मंत्री बनने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। चूंकि वे नाराज हैं इसलिए जैसे ही उनके इस्तीफे की खबर वायरल हुई कांग्रेस का डैमेज कंट्रोल दस्ता सक्रिय हो गया।
लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी हर सभा में लोगों से यह अपील की थी कि वे एक वोट देकर दो सरकार बनाएं। दूसरी सरकार से उनका आशय मप्र में सरकार बनाने को लेकर था। जाहिर है कि सरकार तभी बनेगी जब मौजूदा सरकार गिरेगी। मौजूदा सरकार तब तक नहीं गिर सकती जब तक कि समर्थन देने वाले दलों के तीन विधायकों के अलावा निर्दलीय और कुछ कांग्रेस विधायक नहीं टूटते है।
हालांकि सब कुछ इतना आसान नहीं है। पर भाजपा के तमाम नेता आए दिन सरकार गिराने की बातें जरूर कर रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मतदान वाले दिन कहा था कि कमलनाथ सरकार ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है।
मप्र विधानसभा में नेता विपक्ष गोपाल भार्गव ने तो राज्यपाल को पत्र लिखकर सरकार के फ्लोर टेस्ट की मांग कर डाली थी। तब खुद मुख्यमंत्री नाथ को सामने आकर यह कहना पड़ा कि वे अब तक चार बार बहुमत साबित कर चुके हैं। एक बार और बहुमत साबित करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी।
राज्य भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए नैतिकता के आधार पर कमलनाथ को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए।
जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा कहते हैं कि बात कर भाजपा राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पैदा कर रही है। कांग्रेस सरकार को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। सारे निर्दलीय, समर्थक दल के विधायक और कांग्रेस विधायक एकजुट है।

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