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मध्य प्रदेशः दो महीने में अपनी ही पार्टी में घिरते कमलनाथ

सरकार बनने के दो महीने के अंदर ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार कई ग़लत कारणों से सुर्ख़ियों में आ रही है.
मुख्यमंत्री और छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद रहे कमलनाथ एक अनुभवी और कांग्रेस के बड़े नेता हैं. लेकिन, राज्य की राजनीति में उनके अनुभव की कमी शायद दिखने लगी है.
ऐसी ख़बरें हैं कि राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस के विधायक अपनी ही सरकार से नाराज़ हैं. करीब 25 विधायकों ने कमलनाथ सरकार के मंत्रियों के रवैए से नाराज होकर एक क्लब ही बना लिया है.
तबादले और नौकरशाहों की नियुक्ति से जुड़े मसले पहले ही मनमुटाव पैदा कर चुके हैं.
ऐसी हलचल है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी नौकरशाह अब भी नई सरकार में अपना हुक्म चला रहे हैं.
ऐसे में कमलनाथ अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए 12-12 घंटे तक सचिवालय में बिताने लगे थे. विपक्ष और अपनी ही पार्टी के दबाव में तबादले के कई आदेश तो देर रात तक जारी किए गए और एक ही अधिकारी का 15 दिनों में दो से तीन बार तक तबादला कर दिया गया.

अपनी ही पार्टी से चुनौती
कांग्रेस का एक धड़ा कमलनाथ से सहानुभूति रखता है कि उन्होंने अकेले पार्टी को राज्य में जीत दिलाई. इन नेताओं का कहना है कि एक तरफ कमलनाथ लोकसभा चुनावों में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन के लिए कोशिशें कर रहे हैं तो दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें गिराने की कोशिश कर रहे हैं.
एक डर ये भी बना हुआ है कि अगर पार्टी लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती हैं और नरेंद्र मोदी फिर से सत्ता में लौट आते हैं तो कमलनाथ के लिए राज्य में मुश्किलें बड़ सकती हैं.
गोहत्या और गायों की अवैध बिक्री के मामले में कुछ संदिग्धों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने पर भी कमलनाथ को आलोचना का सामना करना पड़ा था. लोकसभा चुनावों को देखते हुए ऐसा न करना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल बन सकता था क्योंकि हिंदू बहुल आबादी में वो मुस्लिमों के प्रति ‘नरम’ दिख सकते थे.
कमलनाथ के नज़दीकी सूत्रों के मुताबिक वह जिला पुलिस और प्रशासन से एनएसए लगाने का अधिकार लेकर राज्य पुलिस निदेशक को देने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पुलिस और प्रशासन दोनों तरफ़ से विरोध हो रहा है.
मंत्रियों ने दी बीजेपी को क्लीन चित

मुख्यमंत्री के लिए बाहर से ज़्यादा समस्या पार्टी के अंदर से ही पैदा हो रही है. हाल के दिनों में, उनके ही कुछ मंत्रियों ने राज्य विधानसभा में शिवराज सिंह चौहान के प्रशासन को उन मामलों में क्लीन चिट दे दी जो​ पिछले विधानसभा चुनावों में चुनावी मुद्दे बनाए गए थे.
इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश के गृह मंत्री बाला बच्चन से हुई जिन्होंने मंदसौर गोलीकांड में छह किसानों की मौत के मामले में शिवराज सरकार को क्लीन चिट दे दी. इस घटना के समय कांग्रेस विपक्ष में थी और उसने इसे ​क्रूर हत्या कहा था.
राहुल गांधी किसानों के परिवारों को सांत्वना देने मंदसौर गए थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल में 72 घंटों के धरने पर बैठे थे. यह मुद्दा लगातार विधानसभा चुनावों के दौरान उठता रहा था और इन चुनावों में बीजेपी का 15 साल का शासन ख़त्म हो गया था.
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बाला बच्चन को आड़े हाथों ले लिया था और सार्वजनिक रूप से कहा कि नई कांग्रेस सरकार मंदसौर के किसानों के लिए “असंवेदनशील” कैसे हो सकती है.
वहीं, दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन ने भी सिंहस्थ कुंभ 2016 शिवराज सरकार को क्लीन चिट दे दी. जबकि कांग्रेस का कहना था कि इस आयोजन में बड़े स्तर पर वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं. इसके बाद जयवर्धन भी निशाने पर आ गए.

कई धड़ों में बंटी कांग्रेस
यह साफ है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कई धड़े हैं जो कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिधिंया, सुरेश पचौरी और अजय सिंह आदि नेताओं का समर्थन करते हैं. हालांकि, कमलनाथ को इनमें से कई धड़ों का समर्थन हासिल है लेकिन सिंधिया के समर्थक भी मुखर हो रहे हैं.
कमलनाथ की कैबिनेट में परेशान चल रहे मंत्री दिग्विजय सिंह को पत्र लिख रहे हैं या प्रेस कांफ्रेंस करके पूर्व मुख्यमंत्री के बयानों और ट्वीट पर जवाब दे रहे हैं. ​
दिग्विजय सिंह कांग्रेस सरकार में एक के बाद एक विवाद पैदा कर रहे हैं. इसी सरकार में उनके बेटे जयवर्धन, भांजे प्रियव्रत और कई पूर्व सहकर्मी और वफ़ादार मंत्री पद पर हैं.
मौजूद हालातों से परेशान होकर वरिष्ठ मंत्री सज्जन सिंह ने दिग्विजय सिंह को राज्य के मंत्रियों के ​लिए एक ‘प्रशिक्षण सत्र’ आयोजित करने का न्योता दिया था. लेकिन, सज्जन सिंह की इस सलाह ने एक अन्य मंत्री उमंग सिंगर को भड़का दिया.
उमंग सिंगर ने कहा, ”मैं खुद तीन बार विधायक रहा हूं. आप (दिग्विजय सिंह) सोशल मीडिया पर सार्वजनिक होने से पहले मुझसे बात कर सकते थे.”
इससे पहले कथित तौर पर सिंघार ने नर्मदा नदी के किनारे पैधारोपण योजना में ग़बन मामले में शिवराज सरकार को क्लीन चिट दे दी थी और इस पर दिग्विजय सिंह ने नाराज़गी जाहिर की थी. क्योंकि विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने इस योजना में कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने का वादा किया था और दिग्विजय खुद एक भी पेड़ न लगे होने की बात कह चुके हैं.
वहीं, अपना बचाव करने में जुटे दिग्विजय सिंह फिलहाल ये दिखाने में व्यस्त हैं कि कैसे उन्हें अपने बेटे को भी नहीं बख़्शा और उनके इरादे साफ़ हैं.

संभालने की कोशिश में कमलनाथ
पूर्व मुख्यमंत्री का ये मानना है कि राज्य की नौकरशाही नए प्रशासन के साथ काम करने की ‘राजनीतिक हकीकत’ को लेकर अभी तक जागी नहीं है. इसके कारण नौकरशाहों में लापरवाही और इरादतन किए गए पहले के कामों को छिपाने की प्रवृत्ति बनी हुई है.
वहीं, कमलनाथ सरकार में चल रही उथल-पुथल का विपक्षी दल बीजेपी आनंद ले रही है.
विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव को यह कहते सुना गया था, ”राज्य में संवैधानिक संकट जैसे हालात पैदा हो गए हैं क्योंकि मंत्रियों के बयानों पर सदन के बाहर सवाल उठाए जा रहे हैं.”
मुख्यमंत्री कमलनाथ भी राजनेताओं के बीच में एक राजनेता हैं और इन सभी घटनाक्रमों पर नजदीक से नज़र बनाए हुए हैं. उन्होंने गोपाल भार्गव को जवाब दिया, ”मुझे भी संविधान की जानकारी है. इसलिए किसी को मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है. हम ख़बरों पर आधारित कोई भी चर्चा (विधानसभा के अंदर) नहीं करेंगे.”
दिग्विजय सिंह, जयवर्धन, बच्चन या सिंघार का नाम लिए बिना मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया, ”हम मंदसौर गोलीकांड या पौधारोपण घोटाला और सिंहस्थ में वित्तीय वित्तीय अनियमितताएं करने के दोषियों को नहीं छोड़ेंगे. सभी को न्याय दिलाना हमारा संकल्प है- चाहे पीड़ित किसान हों या घोटालेबाजों को सजा देना हो.”
कमलनाथ के नजदीकी सूत्रों ने न्यूज़ चैनल न्यूज़18 पर कहा था कि उम्मीद है कि इस ट्वीट के बाद सारी ‘धूल’ बैठ जाएगी.
दिलचस्प बात यह है कि कमलनाथ के शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, दिग्विजय ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वह कांग्रेस शासन में ‘किंगमेकर’ के रूप में भूमिका निभाना पसंद नहीं करेंगे.
राघोगढ़ के पूर्व राजा ने कहा, ‘सरकार में कुछ भी ग़लत होने पर ‘किंगमेकर’ ही सबसे पहले निशाने पर आता है.

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