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कैलाश ओर भगत के बीच बंद कमरे मे मुलाकात के क्या मायने

भोपाल। राजभवन में नवागत राज्यपाल लालजी टंडन का शपथ समारोह.. जहां कमलनाथ और उनकी सरकार के मंत्री के साथ कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेताओं पर मीडिया का फोकस बनना तय था और ऐसा हुआ भी… इसके अलावा भाजपा कार्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की संगठन महामंत्री सुहास भगत से बंद कमरे में मुलाकात ने दिन में मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.. उधर विवादित अश्लील सीडी कांड में फंसे वरिष्ठ अधिकारी पीसी मीणा की  रवानगी  के साथ रात होते-होते यह खबर भी सामने आई कि मुख्यमंत्री कमलनाथ में मंत्रियों और सहयोगी वरिष्ठ नेताओं के साथ बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर विचार विमर्श किया… पिछले दिनों मध्यप्रदेश में भाजपा के 2 विधायकों के विधानसभा के फ्लोर पर कांग्रेस का समर्थन करने से गरमाई सियासत के बीच राजभवन से लेकर बीजेपी कार्यालय और बल्लभ भवन में मेल मुलाकात का महत्व यदि बढ़ गया.. खासतौर से कैलाश विजयवर्गीय के भोपाल पहुंचने के साथ कांग्रेस नेताओं के रिएक्शन ने कहीं ना कहीं यह सोचने को मजबूर किया कि कमलनाथ सरकार और कांग्रेस कैलाश को गंभीरता से ले रही  तो आखिर क्यों.. जिन्होंने जोधपुर से कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोटस का इशारा किया और भोपाल पहुंचने के बाद अपने ही बयान से किनारा भी कर लिया.. तो सवाल खड़ा होना लाजमी  भाजपा के दो विधायकों से पार्टी के अंदर मची अफरा-तफरी के बीच दिल्ली से किसी राष्ट्रीय पदाधिकारी का प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री से बंद कमरे की मुलाकात आखिर कितनी मायने रखती है.. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह खुद कुछ दिन पहले डैमेज कंट्रोल को मजबूर हुई बीजेपी की थाह लेकर दिल्ली लौट चुके.. तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नई दिल्ली में जाकर जेपी नड्डा और बीएल सतीश से मुलाकात की थी.. इसके बाद से शिवराज हो या कैलाश विजयवर्गीय या फिर नरोत्तम मिश्रा लगातार कमलनाथ सरकार को अपने बयानों से अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे.. जिस पर कमलनाथ ने भले ही चुप्पी साध ली और लेकिन भ्रष्टाचार से जुड़े पुराने मामलों को बाहर निकालकर  नए सिरे से जांच की आड़ में उनके मंत्री और पार्टी के नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी कम गौर करने लायक नहीं है…

मध्यप्रदेश में जब  कांग्रेस और बीजेपी में ठंड चुकी है  और उसके नेता आर-पार की लड़ाई  का संदेश दे रहे  तब लंबे अरसे बाग  सत्ता पक्ष विपक्ष के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा राजभवन में देखने को मिला.. नई भूमिका में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन की बतौर राज्यपाल मध्यप्रदेश में मौजूदगी को सियासी गलियारों में  महत्वपूर्ण माना जा रहा .. क्योंकि इन दिनों मध्य प्रदेश चर्चा में है  तो कमल नाथ द्वारा  सीधे अमित शाह की भाजपा को दी गई चुनौती के कारण..  2 विधायकों का भाजपा से मोहभंग  करवाने के बाद कमलनाथ का भी मुख्यमंत्री रहते राष्ट्रीय राजनीति में  बढ़ चुका है .. वजह साफ है उन्होंने   भाजपा की कमजोर कड़ियों को उजागर कर प्रदेश भाजपा के नेताओं को भी एक्सपोज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी .. शायद यही वजह है जो गेम प्लान बी को लेकर कमलनाथ सुर्खियों में है.. जिन्होंने एक बार फिर अपने सबसे भरोसेमंद मंत्रियों के साथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सुरेश पचोरी जैसे नेताओं से संवाद बनाकर नई रणनीति के साथ नई चुनौतियों पर नजर लगा दी हैं.. मुख्यमंत्री कमलनाथ राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर कोई बड़ा फैसला आने वाले समय में ले सकते हैं.. एक दर्जन अतिरिक्त विधायकों के संपर्क में होने का दावा करने वाली कांग्रेस और उसकी सरकार की एक साथ कई मोर्चों पर सक्रियता के बीच भाजपा के अंदर खाने मची उठापटक को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है… खासतौर से जब ऑपरेशन लोटस को कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में आगे बढ़ाने का दावा करने वाले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भोपाल पहुंचते हैं ..तो न सिर्फ कांग्रेस के कान खड़े होना स्वाभाविक है .. कांग्रेस मीडिया सेल की प्रमुख शोभा ओझा के रिएक्शन को पलटवार माने तो समझा जा सकता है कि कांग्रेस कैलाश को गंभीरता से ले रही है.. चाहे फिर ई टेंडरिंग घोटाले के बाद पेंशन घोटाले पर जांच कमेटी की बात ही क्यों न हो… वह बात और है कि कैलाश ने अपनी चिर परिचित शैली में स्पष्ट कर दिया कि वह कमलनाथ सरकार की गीदड़ धमकी से डरने वाले नहीं है ..और सही वक्त पर इसका जवाब दिया जाएगा.. बयान भले ही कैलाश बदलते रहे फिर भी उनकी आक्रामक शैली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता कि उन्होंने एक बार फिर कमलनाथ जो मुख्यमंत्री के तौर पर 7 महीने गुजार चुके को व्यवसाई करार दिया.. कैलाश जब कांग्रेस की आंख की किरकिरी बन चुके तब इस दौरे के दौरान कैलाश विजयवर्गीय की प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत से वन टू वन चर्चा ने भाजपा के अंदर भी खलबली मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ..कैलाश के दौरे का मकसद भले ही नए राज्यपाल लालजी टंडन का शपथ समारोह था ..जिनमें वह अटल जी की छवि देखते  ..भाजपा के दो विधायक छिटकने के बाद कैलाश पहले राष्ट्रीय पदाधिकारी थे.. जिन्होंने सुहास भगत से बंद कमरे में मुलाकात की ..इस मुलाकात का कोई ब्यौरा इन दोनों में से किसी ने बाहर नहीं लाया ..तो भी आकलन और अनुमान कुछ सवाल जरूर खड़े करते हैं ..सवाल क्या यह मुलाकात सामान्य थी.. या फिर पश्चिम बंगाल के प्रभारी होने के बावजूद क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कोई संदेश लेकर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत से मिले थे… केंद्रीय नेतृत्व दिल्ली में आखिर मध्य प्रदेश भाजपा के बारे में क्या सोचती.. जिसके दो विधायक पाला बदलकर कांग्रेस के समर्थन में चले गए और मध्य प्रदेश के किसी जिम्मेदार नेता को इसकी भनक नहीं लगी… या फिर इस मुलाकात को पिछले दिनों विजयवाड़ा में हुई संघ की बैठक से जोड़ कर देखा जाए.. जिसमें रामलाल की भाजपा से विदाई और संघ में वापसी हो गई थी.. जो मध्य प्रदेश के प्रभारी भी थे..  नए संगठन महामंत्री का दायित्व बीएल संतोष को सौंप दिया गया..  सवाल यह भी खड़ा होता है क्या कैलाश विजयवर्गीय सुहास भगत से मध्य प्रदेश के बनते बिगड़ते समीकरणों को लेकर कोई फीडबैक लेकर वापस दिल्ली गए… यह सवाल इसलिए क्योंकि इस दौरे के दौरान कैलाश विजयवर्गीय मीडिया से खुलकर मिले और हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया ..चाहे फिर वह 2 विधायकों से जुड़ा मामला हो या फिर पेंशन घोटाला और आकाश विजयवर्गीय से जुड़ा ही सवाल क्यों ना हो.. मीडिया से चर्चा के दौरान एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि यदि आप कोई सुझाव देना चाहे तो उससे वह राष्ट्रीय नेतृत्व को जरूर अवगत करा देंगे.. तो फिर सवाल क्या कैलाश और सुहास की इस मुलाकात को 1 अगस्त से शुरू होने वाले सक्रिय सदस्यता अभियान से आगे संगठन चुनाव और उसकी नई जमावट से जोड़कर देखा जा सकता है.. वह बात और है कि कैलाश ने एक बार फिर खुद को मिशन पश्चिम बंगाल तक सीमित रहने की बात कही है…  दूसरी ओर लगातार कमलनाथ सरकार को कभी भी गिरा देने या फिर आपरेशन लोटस के बहाने मध्यप्रदेश में अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करा रहे ..जिस तरह उन्होंने राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी पर हमला करना जारी रखा या फिर कमलनाथ सरकार को चेतावनी दी कि वो कांग्रेस की गीदड़ भभकी से डरने वाले..  संदेश क्या यह माना जाए  कि नजर उनकी भी मध्य प्रदेश पर लग चुकी है ..जो अच्छी तरह जानते हैं कि विपक्ष में रहते भाजपा संगठन से जुड़कर ही अपनी लाइन बड़ी की जा सकती है.. जिनका नाम पहले भी कई बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के तौर पर मीडिया की सुर्खियां बनता रहा है.. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि नारायण त्रिपाठी और शरद कोल को लेकर भाजपा नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है खुद कैलाश विजयवर्गीय के बयान पर गौर किया जाए तो यह जिम्मेदारी उन्हें नहीं सौंपी गई ..तो क्या खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष या फिर उन्होंने नए सिरे से घर वापसी की मुहिम की जिम्मेदारी पार्टी में किसी को सौंपी है ..इन दोनों विधायकों ने  पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के चिन्ह पर लड़ा और अब उन्होंने कांग्रेस सरकार को समर्थन दे दिया तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भले ही ऑपरेशन कमल पार्ट 2 को लेकर कोई बड़ा दावा भले नहीं ठोका.. लेकिन उनके मंत्री और संगठन के नेता जल्द कुछ और विधायकों के कांग्रेस में शामिल किए जाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं ..इसलिए यदि प्रदेश भाजपा की कमजोर कड़ियों पर गौर किया जाए तो राष्ट्रीय नेतृत्व आने वाले समय में कुछ चौंकाने वाले फैसले ले सकता है… खासतौर से यदि 1 अगस्त की प्रदेश भाजपा द्वारा बुलाई गई बैठक में यदि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा का आना होता है तो समझा जा सकता कि अमित शाह की भी पैनी नजर मध्य प्रदेश पर लग चुकी है..

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