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पीडित मानवता के आराध्य शिव

+,,पीडित मानवता के आराध्य शिव+
भगवान शिव को केवल धार्मिक स्वरुप में देखना इकहरा अर्थ संप्रेषण होगा.उनकी उपासना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है.शिव जहाँ संहार केला प्रतीक है,वहीं वेसृष्टि के निर्माण में ‌भी संलग्न. होते है
उनकी आराधना सदियो से मनुष्य में करूणा का भाव जगाती रही है.उनकी छवि,सृष्टि के निर्माण और उसके नाश,सतत प्रक्रिया का बोध क्रांती है.इस तरह चराचर जगत में कुछ भी स्थिर और स्थाई नहीं है.
अतह संकुचित रूप को छोडकर, विशाल द्दष्टिकोण अपनाने का नाम ही शिव आराधना है
   शिव हमें जिस वैचारिक निष्ठा से जोडते है उसमें वसुधैव कटुम्बकम् की भावना अन्तर्निहित है.हमेशा ही शिव पीडित मानवता के आराध्य रहे है
जीवन संघर्षों में स्वावलंबी बनने की ललक लिए ,आदि अनादि काल से मनुष्य शिव की शरण में जाता रहा है.अन्य देवी देवताओं की तरह शिव की आराधना जटिल नहीं है. शिव एकदम भोले भाले हैं. भांग, भस्म और धतुरे के फूलो पर ही रीझ जाते है.इसीलिए देश की विभिन्न लोककथाओं से ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं, जहाँ शिव सामान्य से सामान्यजन की पीडा. को देखील सहायता करने. तत्पर हो जाते हैं. जीवन की तमाम  विपरीत परिस्थितीयों में  शिव मनुष्य को संघर्ष की प्रेरणा देते है.इसलिए खोया विश्र्वास पाने के लिये,मनुष्य शिव की आराधना करता आया है.लेकिन शिव को देखने के लिये अंतःकरण का तीसरा नेत्र होना  जरुरी है.दुनिया भर में जहाँ वर्ग संघर्ष प्रबल हो उठा है और हमारे देश में, सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ रहा है,लहान शिव का चरित्र हमें उदारता की प्रेरणा देता है.उनकी उपासना संपूर्ण मानव जाति के प्रति विनम्र द्दष्टिकोण अपनाने के लिये प्रेरित करती है. इस कारण शिव की उपासना एक समर्पित नागरिक की चेतना से, हमें समृध्द करती है.
महाशिवरात्री का पर्व फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है,लेकिन कुछ. स्थानो पर, चतुर्दशी को भी मनाते है.
ऐसा माना जाता है कि,इस दिन मध्य रात्री के समय भगवान शिव रुद्र रूप में,धरती पर अवतरित हुए. प्रलय की उस बेला में,तांडव नृत्य करते हुए शिव ने समूचे ब्रम्हांड को,अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से  भस्मीभूत कर दिया. था,इसीलिए इसे महाशिवरात्री या कालरात्री नाम दिया गया है.तीनों भुवनोंकी अपार सुंदरी शीलवती गौरा को अपनी अर्द्धागिंनी बनाने वाले शिव,प्रेतों पिशाचो से घिरे रहते हैं. शरीर पर श्मशानों की भस्म रही रहती है,गले में सर्पो की माला और कंठ में विष है.जटाओं से जगततारिणी गंगा अवतरीत हो रही है और माथे पर प्रलयंकारी ज्वाला धारण किए है,बैल को वाहन के रूप में अंगीकार करने वाले शिव,भक्तो को भी श्रीसुख तथा संपदा प्रदान करते है.
शिव से संबंधित अनेक  मिथक भारतीय पुराकथा साहित्य मे मिलते है. भारतीय. प्रतिमा विज्ञान में भी, शिव के विभिन्न रुप कलाकारों की प्रेरणा का स्तोत्र ही नहीं अभिव्यक्ती का मापदंड भी रहे हैं.कथाकारों,कवियो,चित्रकारों और मूर्तिकारों ने शिव की अभिव्यक्ती से अपनी कला को समृद्ध किया है.
गुप्तकाल परमार काल मे शैव परंपरा अपने उत्थान पर थी.परमार काल मे हजारो शिव प्रतिमाओ का निर्माण किया गया. ये आज भी मंदिरो , संग्रहालयों में सुरक्षित है. इन प्रतिमाओं में कही कोमलता है तो कही कठोर व मनोभावो का  चित्रण  करने में अनाम कलाकारों ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया है
हमारे मध्य प्रदेश में भी शिव की आराधना आदि काल से चली आ रही है. इसका प्रमाण हिंगलाजगढ,मंदसौर, विदिशा, खजुराहो,उज्जैन,तथा भोजपुर आदि स्थानो की शिव प्रतिमाएं है.प्रदेश में लगभग दो हजार वर्ष फुलांनी १२०से अधिक शिव प्रतिमाओ का पता लगाया जा चुका है. इनमे शिव की नृत्यकरती छबि है, कुछ एक से अधिक मुखों वाली है.धातुओं के अनेक ऐसे सिक्के मिले हैं जिनमें शिव सादर उकेरे गये है. इससे सिद्ध होता है कि हमारे प्रदेश में भी शैव परंपरा की जडे  गहराई के साथ मौजूद रही है.
एक मिथक के अनुसार प्राचीन काल मे देवता ओर असुरो के बीच व घमासान युध्द हुआ. जिसमे देवताओं की पराजय. हुई‌थके हारे देवता ब्रम्हा जी के नेतृत्व में भगवान विष्णू एवं शिव के पास पहुंचे
सारा वृत्तांत सुनकर शिव एवं विष्णु जी को बहुत गुस्सा आया फलस्वरुप विष्णु के मुख से विराट ज्योति पुंज प्रकट हुआ.शंकर,ब्रम्हा एवं अन्य देवताओं के भी मुख से ही तरह ज्योति पुंज निकले,औरइनके एक स्थान पर घनीभूत होते ही देवी दुर्गा ने प्रकट होकर तमाम असुरो का संहार कर दिया
  संवेदना के स्तर पर जहांगीर शिव हमारी भावनाओं को आलोकित करते है वही हमे व्यापक द्दृष्टि से भी संपन्न बनाते है. उत्तर से दक्षिण,और पूर्व से पश्र्चिम संपूर्ण भारत शिव की आराधना के मामले में एक दिखाई देता है.. सामाजिक तनाव के कारण यह ऐकता टूट रही है.जिसे पुनः एक सूत्र में पिरोने का संदेश हमें शिव से मिलता है. शिव अपने विविध रुपोंसे हमारे मन को अभिभूत करते है

***डॉ चंचला दवे***
सागर

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