भोपाल। प्रदेश के कर्मचारियों को सरकार अभी नकद लाभ नहीं देगी। यानी वित्तीय भार से जुड़ी एक भी मांगें पूरी नहीं होगी। इसके लिए एक से डेढ़ साल तक इंतजार करना होगा। जिन मांगों को पूरा करने में कोई खर्च नहीं आ रहा है वे लोकसभा चुनाव के पहले पूरी हो जाएगी।
सरकार और कर्मचारियों के बीच बुधवार को हुई पहली बैठक में ये बातें सरकार की तरफ से तीन मंत्रियों ने कही। बैठक मंत्रालय के पुराने भवन में हुई। इसमें गृहमंत्री बाला बच्चन, सामान्य प्रशासन मंत्री गोविंद सिंह और विधि विधायी मंत्री पीसी शर्मा ने कर्मचारी संगठनों के 300 से अधिक पदाधिकारियों से चर्चा की।
इसमें मप्र कर्मचारी कांग्रेस के अध्यक्ष वीरेंद्र खोंगल ने बिना वित्तीय भार से जुड़ी मांगों को लोकसभा चुनाव के पहले पूरा करने का प्रस्ताव रखा। जिसका मंत्री पीसी शर्मा ने समर्थन कर दिया। उन्होंने 70 हजार भृत्यों को कार्यालय सहायक का पद नाम देने वाली मांग गुरुवार को कैबिनेट में रखने के संकेत दिए। बता दें कि इस मांग पर सरकार को एक रुपए का वित्तीय भार नहीं आएगा।
कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में कर्मचारियों से जुड़ी 68 मांगें शामिल की थी। इन मांगों पर चर्चा करने सरकार की तरफ से बुधवार को बैठक बुलाई थी। बैठक में कर्मचारी नेता भुवनेश कुमार पटेल की तरफ से एजेंडा रखा गया। कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल ने वित्तीय भार वाली और बिना वित्तीय भार वाली मांगों के बारे में बताया। अन्य कर्मचारी नेता भी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन उन्हें समय की कमी का हवाला देकर बोलने का मौका नहीं दिया। दोपहर 3.30 बजे से शुरू हुई बैठक शाम पौने पांच बजे खत्म हो गई।
यह बोले मंत्री
पीसी शर्मा, विधि विधायी मंत्री
आप लोगों ने प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाकर एक पहिया मजबूत किया। अब लोकसभा चुनाव के जरिए दूसरा पहिया भी मजबूत करने में मदद करें। सभी मांगों को पूरा करेंगे।
बाला बच्चन, गृह मंत्री
आप लोगों की जो मांगें छूट गई थीं वे अब दे सकते हैं। उन मांगों को भी पूरा करेंगे। मुख्यमंत्री मांगों को लेकर चिंतित हैं। समीक्षा करते हैं।
गोविंद सिंह, सामान्य प्रशासन मंत्री
मंत्री बाला बच्चन व पीसी शर्मा कर्मचारियों की जो मांगें मेरे पास लेकर आएंगे उन्हें सीधे मुख्यमंत्री के पास दमदारी के साथ रखूंगा। कांग्रेस ने वचन पत्र में जो वचन एिए हैं वे पांच साल के हैं एक दम से पूरे नहीं हो पाएंगे।
इन मांगों पर आएगा वित्तीय भार
– वचन पत्र में 18 मांगें ऐसी है जिन पर कोई वित्तीय भार नहीं आएगा। इनमें लिपिक, भृत्यों का नाम पद परिवर्तन, अनुकंपा नियुक्ति के नियमों का सरलीकरण आदि शामिल है।
– वचन पत्र में 50 मांगें वित्तीय भार से जुड़ी हैं। जैसे कर्मचारियों की वेतन विसंगति दूर करना, लिपिकों की मांगों का निराकरण, खाली पदों पर भर्ती, अन्य संवर्गों के कर्मचारियों को तीन व चार स्तरीय वेतनमान देना, आशा-ऊषा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में बढ़ोत्तरी करना आदि।
पेंशनरों ने जताई नाराजगी
पेंशनर्स एसोसिएशन मप्र के उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी ने मंत्रियों को मांग पत्र सौंपा। इसमें कहा कि पेंशनरों को डीए व अन्य लाभ का भुगतान करने छत्तीसगढ़ से सहमति की जरूरत होती है। इसमें प्रदेश की तरफ से जबरन देरी की जा रही है। इसके कारण पेंशनरों में असंतोष बढ़ा है। मांगों को लेकर सभी कर्मचारी संगठनों ने मंत्रियों को अलग-अलग ज्ञापन दिए।
कर्मचारियों को साधने की कोशिश
लोकसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में यह बैठक एक तरह से कर्मचारियों को साधने का सबसे बड़ा प्रयास है। ताकि कर्मचारियों की निष्ठा सरकार के प्रति बनी रहे।
ये भी हुआ
– अन्य कर्मचारी संगठन भी मंच से अपनी बात रखना चाहते थे पर मौका नहीं मिला तो नाराज हुए।
– आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा, ऊषा कार्यकर्ता से जुड़े पदाधिकारी चुनाव पूर्व मानदेय बढ़ाने की मांग पर अड़ गए।
– संविदा कर्मचारियों के प्रतिनिधियों ने चुनाव पूर्व नियमित करने की मांग दमदारी से रखी।
– एक कर्मचारी नेता चुनाव में वोट के आंकड़े गिनाने की कोशिश करने लगे, इस पर अन्य कर्मचारियों ने आपत्ति दर्ज कराई तो उन्हें चुप रहना पड़ा।
– कुछ कर्मचारी आपस में यह बात भी करते दिखे कि बैठक सोची-समझी स्क्रिप्ट है। आर्थिक व अनार्थिक मांगों वाला प्रस्ताव भी इसी का हिस्सा है। इसका कोई फायदा नहीं होने वाला। मांगे पूरी करनी ही है तो बुलाने की क्या जरूरत है।
– तत्कालीन भाजपा सरकार के समय सक्रिय रहने वाले कर्मचारी नेताओं की नहीं चली। ये पूरी बैठक के दौरान चुप बैठे दिखे।
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