भोपाल। मध्य प्रदेश में नवंबर-दिसंबर के बीच होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस को भाजपा हल्के में नहीं ले रही है। गुजरात चुनाव से सबक लेते हुए पार्टी का मानना है कि मुकाबला कड़ा होगा। गुजरात में न मजबूत संगठन था न ही कोई बड़ा नेता फिर भी 80 सीटें जीती थीं। मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस के पास कई नेता हैं। संगठन और जनाधार भी है, जिसे कम आंकना ठीक नहीं।
भाजपा हाई कमान के अध्ययन और विश्लेषण के मुताबिक 2003 से लेकर 2013 तक के चुनाव में हर बार माहौल या प्रतिपक्ष की कमजोरी के कारण मध्य प्रदेश में पार्टी आसानी से जीत गई, लेकिन इस बार चुनौती कड़ी पेश होगी। पार्टी नेताओं की सोच है कि गुजरात में कांग्रेस पिछले 22 सालों से वनवास पर है। पार्टी के पास न मजबूत संगठन बचा है न ही कोई बड़ा नेता फिर भी ऐसे बदतर हालात में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देकर 80 सीटें जीत लीं। यही कारण है कि गुजरात से सबक लेकर ही भाजपा मप्र में अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देगी।
सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ताकत झोकेंगे
कांग्रेस मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को हल्का नहीं मान रही है। चुनाव में करो या मरो की तर्ज पर उक्त नेता पूरी ताकत झोंक देंगे। पार्टी मान रही है कि ऐसे हालात में भाजपा के लिए गुजरात से कठिन परिस्थितियां मप्र में बन सकती हैं।
भाजपा ‘पॉलीटिक्स ऑफ परफॉरमेंस’ के आधार पर चुनाव में जाएगी। हमें मालूम है कि कांग्रेस गुजरात की तर्ज पर मप्र में भी जातिवाद और धर्म का कार्ड खेलने का प्रयास करेगी। भाजपा विकास और आने वाले समय के लिए समृद्धि के मॉडल को लेकर शिवराज सिंह के नेतृत्व में जनता के बीच जाएगी। हमें विश्वास है कि सफलता मिलेगी- डॉ. विनय सहस्रबुद्घे, प्रदेश प्रभारी, मप्र भाजपा।
पहले ये रही जीत की वजह:
2003 सत्ता विरोधी लहर का मिला लाभ
2003 में माहौल तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ था। चुनाव विकास पर केंद्रित हो गया था। सड़क-बिजली और पानी चुनावी मुद्दे बन गए थे। इनकी बदहाली का लाभ भाजपा को मिला।
2008 में कांग्रेस को गुटबाजी ले डूबी
-2008 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी के खिलाफ कांग्रेस के ही बाकी नेता लामबंद हो गए और कांग्रेस को हरा दिया।
2013 में यूपीए के प्रति नाराजगी
2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर भी माहौल अनुकूल नहीं था। महंगाई और घोटालों के कारण आम आदमी खफा था। दूसरी तरफ भाजपा का चेहरा बने नरेंद्र मोदी की देश में लहर चल रही थी। प्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की लोकप्रियता चरम पर थी, जिसके कारण पार्टी की विजय आसान हो गई।
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