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बिल्डर ने पजेशन में देरी की तो आप ले सकेंगे 11 प्रतिशत की दर से हर्जाना

भोपाल -यदि बिल्डर आपके मकान के पजेशन में देरी करेंगे या आप बिल्डर को देरी से किश्त देंगे तो 11.30 प्रतिशत की दर से हर्जाना चुकाना होगा। यही नहीं, बिल्डर यदि लोगों से धोखाधड़ी करेंगे तो उन्हें जेल के साथ ही पूरे प्रोजेक्ट की लागत की 10 प्रतिशत रकम बतौर जुर्माना देना होगा।
                    property  26 10 2016
जबकि प्रॉपर्टी डीलर अब रियल एस्टेट एजेंट कहलाएंगे। इनका बकायदा पंजीयन होगा और यदि गड़बड़ी करेंगे तो सजा भी होगी। केंद्र सरकार की मंशा पर बिल्डरों और कॉलोनाइजर्स पर लगाम कसने के लिए प्रदेश सरकार ने मप्र रियल एस्टेट (विनिमय एवं विकास) नियम में यह प्रावधान किए है। मंगलवार से इस नियम को लागू कर दिया गया है।
केंद्र सरकार ने मार्च 2016 में केंद्रीय रियल एस्टेट एक्ट लागू किया था। अब इस एक्ट के प्रावधानों को विस्तार देते हुए राज्य सरकार ने नियम लागू किया है। इसी कानून के तहत जल्द ही सरकार मप्र रियल एस्टेट अथॉरिटी का गठन जल्द होगा। यही अथॉरिटी बिल्डरों के साथ अन्य सरकारी निर्माण एजेंसियों पर नजर रखेगी।
इसी अथॉरिटी की वेबसाइट पर सभी बिल्डरों की पूरी जानकारी मिलेगी। और वे प्रोजेक्ट तब ही शुरू कर पाएंगे, जबकि यहां पंजीयन किया गया हो। वर्तमान में चल रहे सभी हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट के साथ नए प्रोजेक्ट्स में इन नियमों के हिसाब अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होगी। बीडीए, हाउसिंग बोर्ड और नगर निगम भी इसके दायरे में आएंगे।
ऐसे तय होगी लेट फीस – यदि बिल्डर ने दो साल में फ्लैट देने का वादा किया है और वह इसे ढाई साल में देता है तब छह महीने की देरी के हिसाब से वह आपको लेट फीस देगा। यह फीस एसबीआई के प्राइम लेंडिंग रेट से दो प्रतिशत ज्यादा होगी। अभी यह रेट 9.30 प्रतिशत है। दो प्रतिशत जोड़ने पर ब्याज दर 11.30 प्रतिशत हो जाएगी। यानी आपको फ्लैट के कुल मूल्य पर देरी के साथ ही यह राशि बिल्डर देगा।
इससे आपने बैंक से जो होम लोन लिया है, उसकी किश्त चुका सकेंगे। वहीं, यदि आपके साथ धोखाधड़ी या किसी वजह से प्रोजेक्ट में परेशानी आती है तो बिल्डर को जेल के साथ कुल लागत के 10 प्रतिशत जुर्माना देना होगा। यानी यदि उसका प्रोजेक्ट 200 करोड़ रुपए का है तो उसे 20 करोड़ की भारी-भरकम रकम भी अदा करनी होगी।
यह प्रावधान भी खास
– हर प्रोजेक्ट में खुले क्षेत्र में पार्किंग की संख्या बतानी होगी।
– हर तीन महीने में प्रोजेक्ट की हर छोटी-मोटी जानकारी वेबसाइट पर मय फोटो के साथ देनी होगी।
– भले ही पहले बुकिंग किसी भी क्षेत्र पर हुई हो पर अब पुराने प्रोजेक्ट में भी कार्पेट क्षेत्र बताना होगा।
– आवासीय प्रोजेक्ट पर 20 रुपए प्रतिवर्गमीटर और कमर्शियल में 100 रुपए प्रति वर्गमीटर की पंजीयन फीस देनी होगी।
हम पर यह असर
– बिल्डरों द्वारा लेट पजेशन देने की समस्या से निजात मिलेगी। अथॉरिटी से अपील संभव।
– बिल्डरों की धोखाधड़ी से बच पाएंगे। विज्ञापन में बढ़ा-चढ़ा कर दावे नहीं होंगे।
– हर सूचना वेबसाइट पर होगी। यानी बिल्डर चाहकर भी गुमराह नहीं कर पाएंगे।
बिल्डरों पर – परमिशन के लिए एक और खिड़की। यानी भ्रष्टाचार और बढ़ सकता है।
– मौजूदा प्रोजेक्ट के दायरे में आने से बिल्डरों को बुकिंग में मुश्किल आएगी। उन्हें 50 प्रतिशत रकम का प्रबंध करना होगा।
– प्री बुकिंग बंद होना और जेल की सजा जैसे प्रावधान से कई छोटे बिल्डर इस क्षेत्र से बाहर हो जाएंगे।
यह खामी भी – अवैध कॉलोनी पर यह एक्ट और नियम खामोश है। न तो इसमें अवैध कॉलोनी बनाने वालों पर कोई कार्रवाई की बात कही गई और न ही खरीदार पर।
पहली बार इतनी तेजी – वर्तमान मुख्यसचिव अंटोनी डिसा 30 अक्टूबर को रिटायर हो जाएंगे। उन्होंने ही खुद केंद्र से आए मॉडल नियम में संशोधन कर नगरीय प्रशासन संचालनालय भेजे थे। ऐसी चर्चा है कि वे रिटायरमेंट के बाद अथॉरिटी के पहले अध्यक्ष हो सकते हैं। फाइल इतनी तेजी से दौड़ी की महज 25 दिन रियल एस्टेट नियम बना भी लिया और लागू भी कर दिया।
आपत्ति और सुनवाई का मौका ही नहीं – टीएंडसीपी का कानून हो या कोई भी कानून सरकार जनता की राय जानने के लिए उस पर सुझाव और आपत्ति मंगाती है। लेकिन इस नियम में किसी को कोई मौका नहीं दिया गया। न तो इसकी कभी चर्चा हुई न यह सार्वजनिक हुआ। सीधे ही लागू कर दिया है। हालांकि नगरीय प्रशासन का तर्क है कि नगर पालिक एक्ट 1956 के तहत नियम बनाने में सुनवाई और आपत्ति का प्रावधान नहीं है। लेकिन यह नियम इस एक्ट से बाहर का है। और इसी एक्ट एक नियम आउटडोर मीडिया रूल्स में सरकार ने दावे- आपत्ति आमंत्रित किए थे।
काम टीएंडसीपी का लेकिन अब सब कुछ नगरीय प्रशासन से – वरिष्ठ अफसरों में इस बात पर मतभेद थे कि यह काम टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी)का है। इसलिए उसे ही इस कानून के तहत अधिकार दिए जाने चाहिए। लेकिन यह आपत्ति दरकिनार करते हुए नगरीय प्रशासन संचालनालय के आयुक्त को ही अधिकार दे दिए गए।
                                                                    पूनम पुरोहित 

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