भोपाल,-विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनने पर विधान परिषद बनाने का वचन दिया है, लेकिन पार्टी को विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से संकल्प पारित कराने की चुनौती है। इसके बाद संसद में इसे कानून का रूप मिलने के बाद ही विधान परिषद का गठन हो पाएगा। प्रदेश में विधान परिषद की पहल अभी तक दो बार हुई है, जिसमें से एक बार संकल्प पारित होने की स्थिति भी बनी है।
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में विधान परिषद बनाने की बात कही है। कांग्रेस ने इसी तरह की पहल दिग्विजय सिंह सरकार के पहले कार्यकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव में की थी। घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था, लेकिन विधानसभा की कार्यवाही में यह शामिल नहीं हो सकी। वहीं, डीपी मिश्रा सरकार के कार्यकाल में भी 1967 में विधान परिषद बनाने के लिए विधानसभा में संकल्प लाया गया था, जिसे सदन ने पारित कर लोकसभा को भेज दिया था।
विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य जरूरी
विधान परिषद का संकल्प जब विधानसभा में आता है तो उस समय जितने भी सदस्य उपस्थित होंगे, उसके दो तिहाई को उस पर स्वीकृति देना होगी। इसकी सदस्य संख्या कम से कम 40 होना जरूरी है। अधिकतम सदस्य संख्या विधानसभा के विधायकों के एक तिहाई के बराबर होगी। कांग्रेस ने अपने वचन की पूर्ति की तो सरकार बनने पर 77 सदस्य संख्या वाली विधान परिषद का संकल्प कानून बनाने के लिए संसद में पहुंचाएगी।
किन राज्यों में है विधान परिषद
देश के सात राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और जम्मू कश्मीर में विधान परिषद है। इनके अलावा राजस्थान में 2010 तथा असम में 2013 में इसके गठन का फैसला हो चुका है, लेकिन अभी वहां इसका गठन नहीं हो सका है। उधर, तमिलनाडु में 1986 में विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया था।
कौन-कौन हो सकते हैं सदस्य
विधान परिषद में एक तिहाई सदस्य नगर पालिका, जिला बोर्ड व प्राधिकरणों से बनाए जा सकते हैं। 12वें हिस्से की संख्या के बराबर स्नातक शिक्षा पूरी करने वाले व्यक्तियों तो इतनी संख्या में माध्यमिक शैक्षणिक संस्थाओं में अध्यापन कर चुके व्यक्ति सदस्य बनाए जा सकेंगे। एक तिहाई सदस्य विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नेता बनने के पात्र हो सकेंगे।
90 सदस्यीय परिषद का संकल्प था
1967 में विधानसभा में डीपी मिश्रा सरकार के समय 90 सदस्यीय विधान परिषद का संकल्प पारित हुआ था। उस पर कोई फैसला नहीं हुआ और फिर 1998 में कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी इसे शामिल किया गया। विधानसभा से संकल्प पारित होने के बाद संसद को इस पर फैसला लेने में आसानी होगी- भगवानदेव इसरानी, पूर्व प्रमुख सचिव, मप्र विधानसभा
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