भोपाल। मप्र विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से मध्य प्रदेश में नेतृत्व को लेकर असमंजस बरकरार है। पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच नेतृत्व की जंग कई बार सामने आ चुकी है। अब झाबुआ विधानसभा उपचुनाव में मिली पराजय के बाद भाजपा हाईकमान प्रदेश में नेतृत्व की दुविधा को दूर कर सकता है। पार्टी नेताओं का मानना है कि संगठन चुनाव के साथ प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव यह तय करेगा कि आगे पार्टी का नेतृत्व प्रदेश में कौन करेगा। दिसंबर मध्य तक यह तय हो जाएगा कि प्रदेश मे अब पार्टी का चेहरा कौन होगा।
‘एक वोट से दो सरकार” का नारा ठंडा पड़ा
2018 में मप्र में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगातार एक बात उठती रही है कि कमलनाथ सरकार गिरने वाली है और भाजपा की सरकार बनने वाली है। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के शीर्ष नेताओं ने भी इसे मुद्दा बनाया और हर जगह प्रचार किया ‘आपके एक वोट से बनेगी दो सरकार”। लोकसभा चुनाव खत्म हो गए लेकिन हुआ उल्टा कमलनाथ सरकार और मजबूत हो गई। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व भी अपने मंसूबे को अब तक स्पष्ट नहीं कर पाया। कहा जाता है कि प्रदेश में नेतृत्व की अस्पष्टता के कारण ही सरकार बनाने बिगाड़ने का मामला टलता गया।
नेतृत्व तय करेगा चेहरा
फिलहाल मप्र में भाजपा 15 साल के शासन के बाद विपक्ष में है। इस दौरान फैसले लेने से लेकर पार्टी का पॉवर सेंटर सिर्फ प्रदेशाध्यक्ष हैं। पार्टी का सारा नेतृत्व प्रदेशाध्यक्ष के हाथों में है। ऐसे हालात में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर राकेश सिंह को दोहराती है तो ये माना जाएगा कि केंद्रीय नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का पूरा संरक्षण सिंह के साथ है। कार्यकर्ताओं में भी प्रदेश नेतृत्व को लेकर स्पष्टता आ जाएगी।
शिवराज ने नहीं खोले हैं अपने पत्ते
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ने भी अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। चौहान भी प्रदेशाध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। पार्टी ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया और अब अगर पार्टी उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाती है तो ये तय हो जाएगा कि प्रदेश में भाजपा का चेहरा शिवराज ही होंगे। लेकिन, पार्टी उन्हें प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाती है तो ये माना जाएगा कि पार्टी उनका उपयोग प्रदेश के बाहर करना चाहती है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि केंद्रीय नेतृत्व की मंशा क्या है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी इन दिनों उत्तरप्रदेश की राजनीति छोड़कर मप्र में सक्रिय हैं, उन्होंने भोपाल को ही अपना केंद्र बना रखा है। पार्टी के नेता यह भी मानते हैं कि उमा भारती को भी पार्टी मुख्यधारा में लाने पर विचार कर सकती है।
अजा-जजा या महिला का कोटा भी एक विकल्प- पार्टी सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व को मप्र के अध्यक्ष का फैसला टालना होगा तो वह कोटा यानी अनुसूचित जाति, जनजाति या महिला वर्ग का प्रदेशाध्यक्ष बनाकर अगले कुछ दिनों के लिए नए चेहरे पर विराम भी लगा सकती है। हालांकि नगरीय निकाय और फिर पंचायत चुनाव के सामने होने के कारण इस बात की संभावना बेहद कम है।
– संगठन में नेतृत्व को लेकर कहीं कोई दुविधा नहीं है। हर स्तर पर भाजपा में संगठन और विधायिका में नेतृत्व मौजूद है। संगठन चुनाव की प्रक्रिया अभी जारी है जिसके माध्यम से पार्टी संविधान के मुताबिक बूथ कमेटी से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के निर्वाचन हो रहे हैं। – रजनीश अग्रवाल, प्रवक्ता भाजपा मप्र