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संघ की भागवत कथाः क्या यह RSS 2.0 की शुरुआत है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद के जो प्रमुख पड़ाव हैं, उनमें संघ के संस्थापक केशवराव बलिराम हेडगेवार के बाद दूसरा अहम नाम है गुरु गोलवरकर का. हेडगेवार के संघ को आक्रामक और तेज़ी से प्रसारित करने का काम गोलवरकर ने किया. इसके बाद राममंदिर आंदोलन के दौरान दूसरा बड़ा विस्तार था मधुकर दत्तात्रेय यानी बालासाहेब देवरस की सोशल इंजीनियरिंग. इस दौरान संघ अगड़ी जातियों से निकलकर पिछड़ों और दलितों, आदिवासियों को एक अभियान के तहत खुद से जोड़ने की रणनीति के साथ आगे बढ़ा.
इसका लाभ भी संघ को मिला. सोशल इंजीनियरिंग के इसी मंत्र से आज की भारतीय जनता पार्टी की राजनीति चलती नज़र आती है. अगड़ों के मूल और पिछड़ों, दलितों के ब्याज़ पर भाजपा फलफूल रही है. ऐसे कई सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम देशभर में चलाए जा रहे हैं जिनसे दलितों और आदिवासियों को यह बताया जा सके कि वो हिंदू हैं और इस तरह वे हिंदुत्व के विशद विस्तार का हिस्सा बन सकें.
21वीं सदी में अब संघ के सामने सबसे बड़ी चुनौती आधुनिकता और तकनीक के बढ़ते प्रसार में अपने को सुग्राह्य बनाना है. संघ अपनी स्थापना की शताब्दी के अंतिम दशक में चल रहा है. केंद्र में पहली बार भाजपा की बहुमत वाली सरकार है. राज्यों का रंग भी केसरिया है. अपनी शताब्दी की ओर बढ़ते संघ के लिए यह एक सबसे उपयुक्त स्थिति है.
लेकिन इस उपयुक्तता के लिए निरंतरता नितांत आवश्यक है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के दिल्ली में तीन दिनों के उद्बोधनों के पीछे इसी निरंतरता का प्रयास, संघ का विस्तार, संघ का संरक्षण और संचार निहित है. इसे दिल्ली की भाषा में RSS 2.0 की शुरुआत कहा जा सकता है.

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