असम में 40 लाख से भी ज्यादा लोग वहाँ एक तरह से शरणार्थी बनने की राह पर हैं। इनमें से ज्यादातर लोग बंगाली बोलने वाले मुसलमान हैं। इन लोगों को ये साबित करना था कि साल 1971 में बांग्लादेश के गठन के समय वे भारत में रह रहे थे। असम के जिस एनआरसी (नेशनल रजिस्टर और सिटिज़ंस) में इन 40 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया है, उसकी पारदर्शिता पर भी सवाल उठ रहे हैं। एनआरसी पर विवाद होना तो तय था। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि हड़बड़ाहट और जल्दबाजी की गुंजाइश पहले से ही देखी जा रही थी।
जब सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया कि ये कार्रवाई होनी है, तो असम की राज्य सरकार की तरफ से बार-बार ये कहा गया कि हमें थोड़ा वक़्त और दीजिए। इसी सिलसिले में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने राज्य सरकार से कहा कि आपका काम असंभव को संभव बनाना है। चूंकि राज्य सरकार पंचायत चुनाव और दूसरे प्रशासनिक मुद्दों के नाम पर अपनी दलील दे रही थी। राज्य सरकार के लिए भी इतनी जल्दी इस कार्रवाई को अंजाम देना एक मुश्किल काम था।
सुप्रीम कोर्ट का दबाव
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राज्य सरकार पर बहुत ज्यादा दबाव था कि इसे जल्द से जल्द पूरा करना है। पहले इसकी डेडलाइन जून में थी लेकिन असम के कई जिले बाढ़ प्रभावित रहते हैं, इसलिए राज्य सरकार को एक महीने की मोहलत दी गई। असम में जिस हड़बड़ी और जल्दबाजी में इतनी बड़ी कार्रवाई हुई। करोड़ों लोग असम के नागरिक हैं या नहीं, उनके दस्तावेजों की जांच की गई। कानूनी रूप से इतने बड़े पैमाने पर की जा रही कवायद के लिए थोड़ा और वक्त दिया जाना चाहिए था। इसके चलते कई गलतियां सामने आ रही हैं। जिनके नाम इस लिस्ट में आ गए हैं, उनमें से कई लोगों को तो सिर्फ स्पेलिंग मिस्टेक की वजह से ही परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं और इस लिस्ट से बाहर रखे गए 40 लाख लोगों का आंकड़ा बहुत बड़ा है।
सवाल ये भी उठता है कि इन 40 लाख लोगों का क्या होगा। इनका सरकार क्या करेगी। अब तक ये एक अंदाजा ही था कि असम में घुसपैठ हुई, उस पार से लोग आए हैं। लेकिन अब कुछ लाख लोग भारत की अपनी नागरिकता साबित करने में नाकाम रहे हैं तो सरकार इनका क्या करेगी। क्या इन्हें जेल में रखा जाएगा, इन्हें कहां छोड़ा जाएगा, इनके साथ गाय-बैल जैसा सुलूक नहीं किया जा सकता है। न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार के पास इस सिलसिले में कोई स्पष्ट नीति है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि ये रिपोर्ट अंतिम नहीं है। ये बात सही है। अभी अपील होगी, 40 लाख लोग सरकारी बाबुओं के आगे-पीछे अपने जूते घिसेंगे।
अंतिम एनआरसी कब पब्लिश होगी, ये कितने दिनों तक चलता रहेगा, इसे लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है। इन 40 लाख लोगों का क्या होगा, इनमें से जो कोई भी आख़िर में अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगा, उनके साथ सरकार क्या करेगी। बांग्लादेश इन्हें किसी भी हाल में नहीं अपनाएगा. ढाका में चाहे जिसकी भी सरकार हो, अगर भारत उन्हें भेजने की जिद करेगा, तो बांग्लादेश के साथ रिश्ते बिगड़ेंगे।
क्या 40 लाख लोगों को बांग्लादेश भेज सकेगा भारत
असम के मोरी गांव के बाशिंदे अपने दस्तावेज़ दिखा रहे हैं।