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अब मध्‍यप्रदेश में भी सवर्णों को मिलेगा 10 फीसदी आरक्षण, सामान्य प्रशासन विभाग ने भेजा प्रस्ताव

भोपाल। प्रदेश में सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण का फायदा विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने से पहले मिल सकता है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने आरक्षण लागू करने का मसौदा कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया है। बताया जा रहा है राज्य सरकार कोटे से जुड़े केंद्र सरकार के प्रावधानों में संशोधन करके इसे लागू करेगी। पांच एकड़ से ज्यादा बंजर या पड़त भूमि वाले किसानों को भी कोटे का फायदा मिलेगा। इसके साथ ही आवास, भूखंड व फ्लेट सेे जुड़े प्रावधान में भी बदलाव प्रस्तावित किया है।
सूत्रों के मुताबिक सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ.गोविंद सिंह की अध्यक्षता में बनी मंत्रिमंडलीय समिति ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए दस फीसदी आरक्षण देने का निर्णय किया है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित प्रावधान को बदलाव के साथ मध्यप्रदेश में लागू किया जाएगा। आठ लाख रुपए तक सालाना आय वालों को ही इसका लाभ मिलेगा।
इसके साथ ही पांच एकड़ तक जमीन के मालिक की जगह बंजर या पड़त भूमि अधिक होने पर भी आरक्षण मिलेगा लेकिन इसके लिए कम से कम तीन साल राजस्व के रिकॉर्ड में भूमि का उल्लेख बंजर या पड़त भूमि के रूप में होना अनिवार्य होगा। आवासीय भूखंड या फ्लेट के मामले में शहरी क्षेत्र में 12 सौ वर्गफीट और ग्रामीण क्षेत्र में दो हजार वर्गफीट तक पात्रता रहेगी।
कैबिनेट में उठ चुका है मुद्दा
विधानसभा में विपक्ष सवर्ण आरक्षण लागू करने को लेकर जमकर हंगामा कर चुका है। आठ जुलाई से मानसून सत्र की शुरुआत होगी। भाजपा इसे मुद्दा बना सकती है। वहीं, सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरी में आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर चुकी है। इसके संशोधन विधेयक को भी हरी झंडी दे दी है।
तमाम परिस्थितियों को देखते हुए कैबिनेट में जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा सहित अन्य मंत्री सवर्ण आरक्षण जल्द लागू करने की मांग उठा चुके हैं। पिछले सप्ताह हुई कैबिनेट बैठक में अगली प्रस्तावित बैठक में इसे प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। 
पद निर्माण नहीं होगा
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार ने मौजूदा पदों पर नई आरक्षण व्यवस्था का प्रभाव न पड़े, इसलिए नए पद बनाने और शैक्षणिक संस्थाओं में सीट बढ़ाने का निर्णय लिया था। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सभी राज्यों को अपनी परिस्थितियां देखते हुए फैसले करने की छूट दी गई है। इसके मद्देनजर तय किया गया है कि मौजूदा पदों में ही कोटा तय कर दिया जाएगा। सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं में भी इसी तरह व्यवस्था बनाई जाएगी।

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