राजस्थान में भाजपा की हार का जिम्मेदार कौन? इस नतीजे की उम्मीद इस राज्य में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के उलट पहले से ही थी। सत्तारूढ़ पार्टी की हार के लिए एंटी इंकमबेंसी से ज्यादा सिर्फ और सिर्फ वसुंधरा राजे मानी जाएंगी। सत्ता के सेमी फाइनल कार्यक्रम के जरिए जनता का मन टटोलने के लिए अमर उजाला की टीम ने पूरे राजस्थान का दौरा किया। लोगों से चाय पर चर्चा या स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ बहस में एक बात सबसे अटपटी लगी कि प्रदेश की रानी दिलों की रानी न बन सकीं।
वसुंधरा भाजपा की हार की पहली और आखिरी कील साबित होंगी इस बात का एहसास राजधानी जयपुर में ही लग गया था। गौरव यात्रा के दौरान वो अपनी उपल्ब्धियां गिनाती रहीं लेकिन जनता फिर भी उदास नजर आई। अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर परेशान करने में उन्होनें कोई कसरनही छोड़ी। घनश्याम तिवाड़ी ने अलग पार्टी का गठन कर लिया और कहा कि रानी का घमंड भाजपा को उखाड़ फेंकेगा।
आश्चर्यचकित करने वाली बात ये भी थी कि घनश्याम तिवाड़ी सरीखे कई वरिष्ठ और जनाधार वाले नेताओं ने जब राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस बात से अवगत कराया तो उन्होने सभी की शिकायत को जायज ठहराते हुए वसुंधरा के खिलाफ कोई भी कदम उठाने ने साफ मना कर दिया।राजस्थान में कानाफुसी इस बात की थी पीएम मोदी और अमित शाह दोनों ही चाहते थे कि वसुंधरा हार जायें इसलिए टिकट बंटवारे में सिर्फ मैडम की चली।
रानी से आम लोगों में नाराजगी इस बात की थी कि वो सिर्फ जयपुर की रानी हैं, वही बैठती हैं और चापलूसों से घिरी रहती हैं। संगठन के कार्यकर्ताओं से मिलना तो दूर कई वरिष्ठ ऐसे भी मिले जिन्हे बेइज्जत करके अपने दरबार से सीएम ने बैरंग लौटा दिया। लोगों से मिलने की फुरसत उन्हे नहीं थी। जगह-जगह लाभार्थी सम्मेलन का आयोजन करना भी उल्टे नमक छिड़कने का काम कर गया ।भामाशाह जैसी योजनाओं से जिन लोगों को लाभ हुआ उन्हें चुनाव का हथियार बनाया गया जिसे लेकर लोगों में काफी रोष दिखा।
सरकार सभी काम करती है लेकिन ऐसा कर वो अपनी जनती पर ऐहसान नहीं करती,शायद ये बात राजघराने की मुख्यमंत्री न समझ पाई। चुनाव में जीत हासिल करना एक परीक्षा में उत्तीर्ण होने जैसा होता है और सत्ता में वापसी करने के लिए काम के अलावा लोगों के दिल में जगह बनाने का हुनर भी आना चाहिए।शायद सत्ता का मद ही ऐसा होता है कि वसुंधरा राजे सरीखे दिग्गज भी इतनी सरल और अच्छी बात भूल जाते हैं लेकिन जनता जनार्दन हर पांच साल बाद ये सबक सीखाने को तैयार रहती है।
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