विक्रमादित्य व चच नामाह पुस्तको की गई समीक्षा।
साहित्य अकादमी संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा संचालित पाठक मंच केंद्र शिवपुरी की नियमित मासिक समीक्षा गोष्ठी सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय फतेहपुर के विद्यार्थियों व आचार्यो की उपस्थिति में सम्पन्न हुई,जिसमे मुख्य समीक्षक शिवपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार व लेखक प्रमोद जी भार्गव रहे।इस अवसर पर चच नामाह व विक्रमादित्य पुस्तको की समीक्षा समीक्षकों के द्वारा प्रस्तुत की गई।
पुस्तको को पढ़ने व पाठक संख्या को बढ़ाने की दृष्टि से हर जिला केंद्र पर कार्यरत पाठक मंच केंद्र शिवपुरी की इस माह की पुस्तक समीक्षा चच नामाह जिसके अनुवादक हरिश्चन्द्र जी तलरेजा है व दूसरी विक्रमादित्य जिसके अनुवादक राधा बल्लभ त्रिपाठी है कि पुस्तको की समीक्षा श्रोतागणों के समक्ष प्रस्तुत की गई।चच नामाह की समीक्षा सर्वप्रथम करते हुए नव साहित्यकार यश खरे ने कहा कि भारतीय इतिहास शौर्य और रोमांच से भरा हुआ है,भारतीय सीमाएं भी अफगानिस्तान,ब्रह्मदेश,पाकिस्तान,बांग्लादेश तक फैली हुई थी इसकी जानकारी सटीक इतिहास पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है,हरिश्चन्द्र तलरेजा जी ने अनुवाद कर इस पुस्तक को प्रस्तुत पढ़ने के लिए किया है।एक शासक जो अपनी क्षमता योग्यता के आधार पर प्रजा व राजा का प्रिय किस प्रकार बनता है,किस प्रकार उसकी प्रेम कहानी आगे बढ़ती है और फिर किस प्रकार उसकी वंशावली बढ़ती है वह चच वंश के बारे में पुस्तक में बताया गया है।इतिहास के साक्ष्यों को समेटे पुस्तक बेहद रोचक है परंतु कई जगह विचित्रता के साथ प्रस्तुति में ठहराव सा आया है।
शिवपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद भार्गव जी ने भारत के वरिष्ठ साहित्यकार राधा बल्लभ त्रिपाठी जी द्वारा अनुवादित पुस्तक विक्रमादित्य की समीक्षा करते हुए कहा कि दो हजार साल पहले रहे उज्जैन के श्रेष्ठ शासक विक्रमादित्य पर आधारित उक्त पुस्तक है,उस समय उज्जैन एक बड़ा राज्य हुआ करता था।सभी साक्ष्यों को बेहद रोचकता के साथ विक्रमादित्य के कार्यो उनकी श्रेष्ठता,हर क्षेत्र खासकर खगोल विधा,ज्योतिष पंचांग में उनकी पारंगता को प्रस्तुत किया है।लेखक को अनुवाद करने में काफी कठिनाई आयी,ब्रिटेन की लाइबेरी में उक्त पुस्तक की पांडुलिपि लेखक के एक परिचित को मिली जिसे लेखक तक पहुचाया गया जिसको अनुवाद कर प्रस्तुत राधाबल्लभ त्रिपाठी ने की।राष्ट्रीयता से जुड़े हुए मूल्य,अद्भुत शौर्य गाथा पुस्तक के द्वारा प्रस्तुत की गई है जिससे गौरवशाली भारतीय संस्कृति अनंतकाल तक अक्षुण्ण रहेगी।विक्रम संवत विक्रमादित्य के समय से ही प्रारम्भ हुआ और जिन शक,हूण, यवनों को विक्रमादित्य ने परास्त किया दुर्भाग्य से उसी शक संवत को हम मानते है,परंतु तेजस्वी और महान शासक विक्रमादित्य के नाम से चल रहा विक्रम संवत को हम गौरव के रूप में नही लेते।महाकाल मंदिर दुनिया का केंद्र बिंदु है,विक्रमादित्य के समय मे महाकाल मंदिर को व्यापक प्रचार प्रसार व मान्यता प्राप्त हुई।खगोल विधा ज्योतिष पंचांग के क्षेत्र में विशेष कार्य विक्रमादित्य ने किया साथ ही विदेशी आक्रांता जिन्होंने भारत की पवित्र भूमि पर कब्जा करने की नीयत से हमला किया उनको अपने अद्भुत तेज शौर्य से धूल विक्रमादित्य ने चटाई इन सभी की प्रस्तुति कर लेखक ने राष्ट्रीयता को ही दर्शाया है।
चच नामाह की समीक्षा करते हुए सरस्वती विद्यापीठ के आचार्य अरविंद सविता व पाठक मंच के संयोजक आशुतोष शर्मा ने कहा कि इतिहास को बेहतर तरीके से प्रस्तुत व भारतीय गौरव को चच नामाह में प्रस्तुत किया है।पीढ़ी दर पीढ़ी राजाओं ने अपने कौशल से न सिर्फ राज्य की सीमाओं को बढ़ाया राज्य की प्रजा का भी विश्वास अर्जित किया उसकी प्रस्तुति चच नामाह में की गई है।इस अवसर पर अतिथियो का स्वागत दीपेश फड़नीष व कपिल पाराशर द्वारा किया गया,संचालन केंद्र संयोजक आशुतोष शर्मा,व आभार प्रदर्शन प्राचार्य पवन शर्मा के द्वारा किया गया।
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