मंथन न्युज, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) वर्ग को राज्य की नौकरियों में आरक्षण का लाभ देने के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अपने राज्य में एससी एसटी सूची में शामिल व्यक्ति दूसरे राज्य की सरकारी नौकरी में एससी एसटी के आरक्षण का लाभ नहीं प्राप्त कर सकता।पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया फैसला
हालांकि कोर्ट ने दिल्ली के बारे में व्यवस्था देते हुए कहा है कि दिल्ली की नौकरियों में आरक्षण के केन्द्रीय प्रावधान लागू होंगे। ये फैसला जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने चार एक के बहुमत से सुनाया है। पीठ के बाकी न्यायाधीश जस्टिस एन रमना, जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस एम शांतनगौडर और जटिस्स एस अब्दुल नजीर थे।आरक्षण का संवैधानिक लाभ उस राज्य की सीमा तक ही सीमित
कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या एक राज्य में एससी एसटी वर्ग में आने वाला व्यक्ति दूसरे राज्य की नौकरी मे एससी एसटी आरक्षण के लाभ का दावा कर सकता है। कोर्ट ने बहुमत से दिये फैसले में कहा है कि ऐसा नहीं हो सकता। एक व्यक्ति जो एक राज्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग में दर्ज है उसे दूसरे राज्य मे जाने पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिल सकता। अनुच्छेद 341 और 342 में मिले हुए आरक्षण के संवैधानिक लाभ उस राज्य की सीमा तक ही सीमित हैं जिस राज्य की सूची में वह जाति शामिल है।राज्य को तय प्रक्रिया का पालन करना होगा
एक राज्य का एससी एसटी निवासी दूसरे राज्य में उस वर्ग का होने का दावा नहीं कर सकता।कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 341 और 342 के तहत अनुसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति की सूची किसी राज्य के बारे में जारी करते हैें। वह सूची किसी विशेष राज्य की भौगोलिक स्थिति देखते हुए उसी के बारे में जारी होती है। राज्य उसमें कोई भी बदलाव नहीं कर सकता न ही स्वयं से उसका दायरा बढ़ा सकता है। अगर राज्य किसी वर्ग को उसमें लाभ देना चाहता है तो उसे उसके लिए तय प्रक्रिया का पालन करना होगा।…तो अव्यवस्था कायम हो जाएगी
राज्य को अपना नजरिया केन्द्रीय अथारिटी को बताना होगा ताकि संसदीय प्रक्रिया के तहत उस राज्य की एससी एसटी सूची में संशोधन करके उसे जोड़ा जाए। राज्य अनुच्छेद 16(4) के तहत एकतरफा फैसला लेकर उसमें बदलाव नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा होने लगेगा को तो अव्यवस्था कायम हो जाएगी। इसीलिए संविधान में इसकी इजाजत नहीं दी गई है। हालांकि न्यायमूर्ति आर भानुमति ने बहुमत की पीठ से असहमति जताई है और अलग से उसके कारण दिये हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बावत दिए गए पूर्व फैसलों पर विस्तृत चर्चा करते हुए संविधान पीठ को विचार के लिए भेजे गए सवाल का जवाब दिया है।
हालांकि कोर्ट ने दिल्ली के बारे में व्यवस्था देते हुए कहा है कि दिल्ली की नौकरियों में आरक्षण के केन्द्रीय प्रावधान लागू होंगे। ये फैसला जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने चार एक के बहुमत से सुनाया है। पीठ के बाकी न्यायाधीश जस्टिस एन रमना, जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस एम शांतनगौडर और जटिस्स एस अब्दुल नजीर थे।आरक्षण का संवैधानिक लाभ उस राज्य की सीमा तक ही सीमित
कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या एक राज्य में एससी एसटी वर्ग में आने वाला व्यक्ति दूसरे राज्य की नौकरी मे एससी एसटी आरक्षण के लाभ का दावा कर सकता है। कोर्ट ने बहुमत से दिये फैसले में कहा है कि ऐसा नहीं हो सकता। एक व्यक्ति जो एक राज्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग में दर्ज है उसे दूसरे राज्य मे जाने पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिल सकता। अनुच्छेद 341 और 342 में मिले हुए आरक्षण के संवैधानिक लाभ उस राज्य की सीमा तक ही सीमित हैं जिस राज्य की सूची में वह जाति शामिल है।राज्य को तय प्रक्रिया का पालन करना होगा
एक राज्य का एससी एसटी निवासी दूसरे राज्य में उस वर्ग का होने का दावा नहीं कर सकता।कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 341 और 342 के तहत अनुसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति की सूची किसी राज्य के बारे में जारी करते हैें। वह सूची किसी विशेष राज्य की भौगोलिक स्थिति देखते हुए उसी के बारे में जारी होती है। राज्य उसमें कोई भी बदलाव नहीं कर सकता न ही स्वयं से उसका दायरा बढ़ा सकता है। अगर राज्य किसी वर्ग को उसमें लाभ देना चाहता है तो उसे उसके लिए तय प्रक्रिया का पालन करना होगा।…तो अव्यवस्था कायम हो जाएगी
राज्य को अपना नजरिया केन्द्रीय अथारिटी को बताना होगा ताकि संसदीय प्रक्रिया के तहत उस राज्य की एससी एसटी सूची में संशोधन करके उसे जोड़ा जाए। राज्य अनुच्छेद 16(4) के तहत एकतरफा फैसला लेकर उसमें बदलाव नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा होने लगेगा को तो अव्यवस्था कायम हो जाएगी। इसीलिए संविधान में इसकी इजाजत नहीं दी गई है। हालांकि न्यायमूर्ति आर भानुमति ने बहुमत की पीठ से असहमति जताई है और अलग से उसके कारण दिये हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बावत दिए गए पूर्व फैसलों पर विस्तृत चर्चा करते हुए संविधान पीठ को विचार के लिए भेजे गए सवाल का जवाब दिया है।