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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- 'एससी-एसटी कर्मचारी अपने आप प्रमोशन में आरक्षण के हकदार हैं'

सुप्रीम कोर्ट

केंद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के सरकारी कर्मचारी कोटा के तहत अपने आप प्रमोशन के हकदार होते हैं। केंद्र का कहना है कि एम नागराज के आदेश पर पुर्नविचार किए जाने की जरुरत है। सरकार का कहना है कि उसके पास पिछड़ापन निर्धारित करने के लिए डाटा का संग्रह ना तो व्यवहारिक है और ना ही उसकी जरुरत है। इस मामले पर मंगलवार को लिखित जवाब दाखिल करते हुए केंद ने कहा कि एक समुदाय को संसद द्वारा बिल पास करने के बाद ही एससी कैटिगरी की सूची में शामिल किया गया था।
केंद्र ने बताया कि संसद के संतुष्ट होने के बाद एक समुदाय को अनुसूचित जाति का टैग दिया गया जब एक बिल पास किया क्योंकि समुदाय के सदस्य इस बात से संतुष्ट हुए कि यह लोग पारंपरिक छुआछूत की परंपरा की वजह से अत्यधिक सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित रहे हैं। इसी तरह एक समुदाय को अनुसूचित जनजाति का टैग तब दिया गया जब संसद ने उन्हें जनजाति में शामिल किया था क्योंकि समुदाय के सदस्यों के भौगोलिक अलगाव के साथ ही एक विशिष्ट संस्कृति के साथ प्राचीन लक्षण थे और लोगों को उनके संपर्क में शर्म आती थी और इसलिए सदियों से उन्हें पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा।
केंद्र ने कहा, ‘एक बार किसी समुदाय को पिछड़ेपन के आधार पर एससी या एसटी श्रेणी में शामिल कर लिया जाए है तो पिछड़ेपन का परीक्षण किया जाता है। पिछड़ापन सामाजिक और आर्थिक मामले की बात भी आती है। जहां एक तरफ सामाजिक पिछड़ेपन को मापा जा सकता है वहीं सामाजिक को माप पाना बहुत कठिन है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि साल 2006 में एम नागराज के आदेश की वजह से एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया है।’
 
सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका काफी सालों से पिछड़ापन झेल रहा है। उन्होंने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को फैसले की समीक्षा करने की जरुरत है। अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि एससी-एसटी तबके को आज भी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। उन्होंने कहा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एकजुट समूह हैं और आर्थिक और सामाजिक उन्नति के आधार पर उन्हें फिर से समूहित करने की कोई कार्रवाई करना उचित नहीं होगी।

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