साहित्य अकादमी भोपाल से सम्बद्ध पाठक मंच केंद्र शिवपुरी की मोहे ब्रज बिसरत नाही और ज्ञान कथाये पुस्तको की समीक्षा शिवपुरी के वरिष्ठ साहित्यकारों के द्वारा शासकीय महाविद्यालय के विधि कक्ष में आहूत की गयी।
सर्वप्रथम पाठक मंच के केंद्र संयोजक आशुतोष शर्मा ने अतिथियों का परिचय व पुस्तक लेखकों की जानकारी प्रस्तुत की।इसके बाद वरिष्ठ लेखक सुमन चौरे होशंगाबाद द्वारा लिखित मोहे ब्रज बिसरत नाही व धीर सिंह पवैया इंदौर के द्वारा लिखित ज्ञान कथाये पुस्तको की समीक्षा आरम्भ की गयी, सर्वप्रथम ज्ञान कथाये की समीक्षा प्रस्तुत करते हुऐ कु अनुप्रिया तंवर ने कहा कि ज्ञान कथाये में छोटी छोटी ज्ञानप्रद कहानियां लेखक के द्वारा प्रस्तुत की गई है जो पाठको में ज्ञान का संचार पुस्तक के टाइटल अनुसार ही करती है,अगर हम उन कथाओं को पढ़ते है तो लेखक का जैसा विचार रहा है कि पाठक वर्ग लोभ,द्वेष,अंहकार से दूर रहे उसकी प्रस्तुति के अंदाज और ज्ञान प्रद कहानियों के संकलन से लेखक उसमे सफल हुए है,जिन कहानियों का उनने चयन किया है वह पूरी तरह व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हुए गुणों का विस्तार ही करती है।केवल कुछ एक कहानियों के टाइटल में चूक हुई है अन्यथा पुस्तक ज्ञानप्रद ही है।
शिवपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार,लेखक व कलाकर्मी अरुण अपेक्षित ने मोहे ब्रज बिसरत नाही लेखिका सुमन चौरे की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि लेखिका ने अपने बचपन और अपने ग्राम की स्मृतियों को बेहद सुंदर ढंग से वर्तमान परिवेश में ढाला है,लगभग 50 वर्ष पूर्व के अपने ग्राम की स्मृतियों को प्रस्तुत करते हुए लेखिका ने रूढ़िवादिता ढोंग और पाखंड पर और सिमटते जा रहे रिश्ते और समाप्त होती जा रही परम्पराओ को प्रस्तुत किया है।लेखिका शिक्षा जगत से जुड़ी हुई है अतः उनने अपने विकलांग विद्यार्थियों के साथ किये गये कार्यो को भी बेहद रोचक अंदाज में प्रस्तुत कर वास्तविक शिक्षा प्रदान की है।लेखिका ने स्पस्ट किया कि पहले रिश्तों में दिखावा नही होता था आत्मीयता होती थी,ग्राम में किसी एक कि बेटी पूरे ग्राम की बेटी होती थी अतः दुराचार की तो कल्पना ही नही हो सकती थी।विवाह आदि कार्यक्रमो में सहकारिता परस्पर ग्राम को पारिवारिक संबंधों में बांधे रखते थे।पुरानी और नई मान्यताओं को लेकर उचित लेख पुस्तक में है।प्राचीनता की जब जब बात पुस्तक में आई है तब तब विवरणात्मक ज्यादा है।
शिवपुरी के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक,लेखक व कवि डॉ एच पी जैन जी इसी पुस्तक मोहे ब्रज बिसरत नाही की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि लेखिका ने तीर्थ बेटा नामक संस्मरण प्रस्तुत करके पुस्तक पढ़ते पढ़ते द्रवित कर दिया,बचपन से लेकर बृद्धावस्था तक के भावनात्मक संबंध पुस्तक में प्रस्तुत है,चूंकि लेखिका निमाड़ से आती है तो पुस्तक में निमाड़ी संस्कृति की झलक ग्रामीण परिवेश की दिखाई देती है जैसे फातिमा मौसी को मावसी, व लेखिका की स्वयं की माताजी को मोठी माय जैसे शब्दों के प्रस्तुत किया है।भावनात्मक विवरण जितने बेहतर तरीके से प्रस्तुत किये है उससे पुस्तक बार बार पढ़ने की इच्छा करती है।लेखिका ने भाईचारे की प्रस्तुति की है,फातिमा मावसी पूरे ग्राम की मौसी थी,मुंगी चाचा पूरे ग्राम के चाचा थे,और जब इन दोनों के निधन के समाचार लेखिका को मिलते है उसके बाद का जो चित्रण लेखिका ने प्रस्तुत किया है वह वर्तमान परिवेश में बढ़ रही कटुता को समाप्त करने में ही सहायक होगी।लेखिका बताती है कि रंगरेज मुंगी चाचा के निधन के बाद उनकी चादर तो सफेद थी परंतु ग्राम के बच्चे बच्चे से उनके प्रेम के संबंध होने से वह चादर रंगों से रंगी हो गयी शायद प्रभु को भी इस रंगरेज की जरूरत थी इस लिए इन्हें वहाँ बुला लिया।इसके साथ पर्यावरण,गौरैया की प्रस्तुति से लेखिका ने इस और भी ध्यान आकृष्ट किया है।लेखिका ने संस्कार और संस्कृति से जोड़ने का कार्य किया है।इस अवसर पर आशीष वचन पुरषोत्तम जी गौतम व आभार प्रदर्शन कु वैशाली पाल ने किया।
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