भोपाल। कमलनाथ सरकार ने आखिरकार सरकारी नौकरियों में अधिकतम आयु सीमा नए सिरे से तय कर दी। अब अन्य राज्य सहित प्रदेश के अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम आयु सीमा एक समान 40 वर्ष रखी गई है। 11 जून को सरकार ने अधिकतम आयु सीमा 28 वर्ष से बढ़ाकर 35 वर्ष कर दी थी। इससे अनारक्षित वर्ग के मध्यप्रदेश के निवासियों को पांच साल का नुकसान हो रहा था। मंत्रियों ने इसमें संशोधन का मुद्दा उठाया था।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सभी पहलुओं का परीक्षण करने के बाद आयु सीमा सबके लिए एक समान 40 साल करने का निर्णय किया है। मध्यप्रदेश के अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, नगर सैनिक, महिला और निगम, मंडल, स्वशासी संस्थाओं के कर्मचारियों को पांच साल की छूट दी जाएगी। यह निर्णय गुरुवार से प्रभावी हो गया।
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट जबलपुर के निर्णय की रोशनी में सरकारी नौकरियों में अधिकतम आयु सीमा को 28 वर्ष से बढ़ाकर 35 वर्ष कर दी थी।
यह फैसला मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों के आवेदकों के लिए लागू हुआ था, लेकिन इसकी वजह से प्रदेश के अनारक्षित वर्ग को अधिकतम सीमा में पांच साल का नुकसान हो रहा था। पहले प्रदेश के अनारक्षित वर्ग के लिए अधिकतम आयु सीमा सरकारी नौकरियों के लिए 40 साल थी। नए प्रावधानों से हो रहे नुकसान के चलते हो रहे विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सामान्य प्रशासन विभाग को पूरे मामले का परीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
विभाग ने मुख्यमंत्री को बताया कि पहले वर्ष 2016 तक अधिकतम आयु सीमा 40 वर्ष ही थी। 12 मई 2017 को संशोधित करके अधिकतम आयु सीमा 28 वर्ष कर दी गई। मध्यप्रदेश के मूल निवासियों को अधिकतम आयु सीमा में 40 वर्ष तक की छूट दी गई थी। इसमें अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को पांच साल की अतिरिक्त छूट दी गई थी।
हाईकोर्ट के आदेश पर किया था आयु सीमा में बदलाव
उच्च शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापकों की भर्ती में इस प्रावधान को लेकर हाईकोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की गई। इस पर हाईकोर्ट ने सात मार्च 2018 आदेश दिया कि यह प्रावधान संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और इसे निरस्त कर दिया।
उच्च शिक्षा विभाग इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गया, लेकिन सुनवाई से पहले याचिका वापस ले ली गई। तत्कालीन शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव के कारण इस पर कोई फैसला नहीं किया। कमलनाथ सरकार ने इस मामले में दूसरे राज्यों के प्रावधान का अध्ययन करने के निर्देश दिए थे पर लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो गई और कोई फैसला नहीं हो पाया।
आचार संहिता समाप्त होने के बाद नियुक्तियों पर पड़ रहे असर को देखते हुए विधि विभाग की सलाह पर अधिकतम आयुसीमा को 28 से बढ़ाकर 35 वर्ष करने का कैबिनेट में प्रस्ताव रखा, जिसे मंजूरी मिल गई। इससे प्रदेश के अनारक्षित वर्ग को अधिकतम आयु सीमा में पांच साल का नुकसान हो रहा था। चौतरफा विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुन: परीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
अब यह होंगे प्रावधान
– राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से राजपत्रित और कार्यपालिक पदों के लिए होने वाली भर्ती में न्यूनतम आयु सीमा 21 और अधिकतम 40 वर्ष रहेगी। वहीं, राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि के बाहर तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 से 40 वर्ष होगी।
– अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, शासकीय, निगम, मंडल, स्वशासी संस्थाओं के कर्मचारियों, नगर सैनिक, नि:शक्तजन एवं महिलाओं (आरक्षित-अनारक्षित) के लिए अधिकतम आयु सीमा में पांच साल की छूट रहेगी यानी 45 साल तक शासकीय सेवा में आने का मौका मिलेगा।
रोजगार कार्यालय में जीवित पंजीयन अनिवार्य
प्रदेश सरकार ने आयु सीमा बढ़ाने के साथ सभी के लिए रोजगार कार्यालय में जीवित पंजीयन अनिवार्य कर दिया है। इससे अन्य राज्यों के वे अभ्यर्थी ही नियुक्ति के पात्र होंगे, जिनका रोजगार कार्यालय में पंजीयन होगा। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जीवित पंजीयन का प्रावधान करने की बात रखी थी पर विधि विभाग के अधिकारियों ने इसको लेकर असहमति जताई थी।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सभी पहलुओं का परीक्षण करने के बाद आयु सीमा सबके लिए एक समान 40 साल करने का निर्णय किया है। मध्यप्रदेश के अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, नगर सैनिक, महिला और निगम, मंडल, स्वशासी संस्थाओं के कर्मचारियों को पांच साल की छूट दी जाएगी। यह निर्णय गुरुवार से प्रभावी हो गया।
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट जबलपुर के निर्णय की रोशनी में सरकारी नौकरियों में अधिकतम आयु सीमा को 28 वर्ष से बढ़ाकर 35 वर्ष कर दी थी।
यह फैसला मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों के आवेदकों के लिए लागू हुआ था, लेकिन इसकी वजह से प्रदेश के अनारक्षित वर्ग को अधिकतम सीमा में पांच साल का नुकसान हो रहा था। पहले प्रदेश के अनारक्षित वर्ग के लिए अधिकतम आयु सीमा सरकारी नौकरियों के लिए 40 साल थी। नए प्रावधानों से हो रहे नुकसान के चलते हो रहे विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सामान्य प्रशासन विभाग को पूरे मामले का परीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
विभाग ने मुख्यमंत्री को बताया कि पहले वर्ष 2016 तक अधिकतम आयु सीमा 40 वर्ष ही थी। 12 मई 2017 को संशोधित करके अधिकतम आयु सीमा 28 वर्ष कर दी गई। मध्यप्रदेश के मूल निवासियों को अधिकतम आयु सीमा में 40 वर्ष तक की छूट दी गई थी। इसमें अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को पांच साल की अतिरिक्त छूट दी गई थी।
हाईकोर्ट के आदेश पर किया था आयु सीमा में बदलाव
उच्च शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापकों की भर्ती में इस प्रावधान को लेकर हाईकोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की गई। इस पर हाईकोर्ट ने सात मार्च 2018 आदेश दिया कि यह प्रावधान संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और इसे निरस्त कर दिया।
उच्च शिक्षा विभाग इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गया, लेकिन सुनवाई से पहले याचिका वापस ले ली गई। तत्कालीन शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव के कारण इस पर कोई फैसला नहीं किया। कमलनाथ सरकार ने इस मामले में दूसरे राज्यों के प्रावधान का अध्ययन करने के निर्देश दिए थे पर लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो गई और कोई फैसला नहीं हो पाया।
आचार संहिता समाप्त होने के बाद नियुक्तियों पर पड़ रहे असर को देखते हुए विधि विभाग की सलाह पर अधिकतम आयुसीमा को 28 से बढ़ाकर 35 वर्ष करने का कैबिनेट में प्रस्ताव रखा, जिसे मंजूरी मिल गई। इससे प्रदेश के अनारक्षित वर्ग को अधिकतम आयु सीमा में पांच साल का नुकसान हो रहा था। चौतरफा विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुन: परीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
अब यह होंगे प्रावधान
– राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से राजपत्रित और कार्यपालिक पदों के लिए होने वाली भर्ती में न्यूनतम आयु सीमा 21 और अधिकतम 40 वर्ष रहेगी। वहीं, राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि के बाहर तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 से 40 वर्ष होगी।
– अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, शासकीय, निगम, मंडल, स्वशासी संस्थाओं के कर्मचारियों, नगर सैनिक, नि:शक्तजन एवं महिलाओं (आरक्षित-अनारक्षित) के लिए अधिकतम आयु सीमा में पांच साल की छूट रहेगी यानी 45 साल तक शासकीय सेवा में आने का मौका मिलेगा।
रोजगार कार्यालय में जीवित पंजीयन अनिवार्य
प्रदेश सरकार ने आयु सीमा बढ़ाने के साथ सभी के लिए रोजगार कार्यालय में जीवित पंजीयन अनिवार्य कर दिया है। इससे अन्य राज्यों के वे अभ्यर्थी ही नियुक्ति के पात्र होंगे, जिनका रोजगार कार्यालय में पंजीयन होगा। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जीवित पंजीयन का प्रावधान करने की बात रखी थी पर विधि विभाग के अधिकारियों ने इसको लेकर असहमति जताई थी।