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हमारी महान संस्कृति, स्वभाव और स्वार्थवत सत्ताआंे ने हम आध्यात्म अकूत प्राकृतिक संपदा, ज्ञान, विज्ञान, प्रतिभा के धनी लोगों को, समृद्ध, खुशहाल नहीं रहने दिया व्ही.एस.भुल्ले

दुनिया को सबसे पहले ज्ञान, विज्ञान, तकनीक, व्यापार सफल, सार्थक, व्यवस्था, सेवा, कल्याण, त्याग-तपस्या से अवगत कराने वाले महान भू-भाग आर्यवृत भरतखण्डे अर्थात भारतवर्ष का हर्ष स्वार्थवत सत्ताओं और हमारी महान संस्कृति, स्वभाव के चलते ऐसा होगा किसी ने कभी सपने में भी न सोचा होगा। 
मगर आज हम उस महान भारत के वंशजों का कटु सच यह है कि आज हम धन, लालची, अहंकारी, स्वार्थी, जघन्य व्यापारियों के लिए कच्चे के माल और कामगारों का हब बन चुके है। जो इस महान राष्ट्र के लिए दर्दनाक भी है और हमारे लिए शर्मनाक भी।
अगर हम महान भारतवर्ष के लोग चाहते तो हम हमारे पूर्वजों की त्याग-तपस्या कुर्बानियों से भरी विरासत को बचा राष्ट्र में मौजूद प्राकृतिक संपदा, प्रतिभाओं का संरक्षण, सम्बर्धन कर उन्हें सहज, संसाधन और अवसर उपलब्ध करा, अपनी समृद्धि को बचा अपने नौनिहालों को सहज, समृद्ध, खुशहाल माहौल मुहैया करा, इस महान राष्ट्र को समृद्ध, खुशहाल बना सकते थे। मगर हमारी महान संस्कृति, स्वभाव तथा स्वार्थवत सत्ताओं ने कभी ऐसा होने नहीं दिया। 
पहलंे हम मान-सम्मान, स्वाभिमान के शिकार हुए फिर सुरक्षा, संरक्षण और आज हम सेवा कल्याण के शिकार है। 
हम न तो तब सेवा, संरक्षण के नाम सूतखोरी और धृृष्टता से निजात पा सके, न ही आजादी के बाद इस कलंक को धो सके। परिणाम कि आर्थिक विकास के नाम पर एक मर्तवा फिर से हम उस धृष्टता, सूतखोर प्रवृति के शिकार हो गए। जो सृष्टि, सृजन में बाधक थे और रहे है। 
अगर आज भी हम आध्यात्म, ज्ञान, विज्ञान, तकनीक के महारथियों के उत्तराधिकारी, वंशज नहीं जागे, तो आने वाला हमारा भविष्य नवसंस्कृति के बीच समृद्ध, खुशहाल रहने वाला नही। 
क्योंकि जिस तरह से आज की सियासत में गिरोहबंद संस्कृति और काॅरपोरेट कल्चर का सत्ता सौपानों तक पहुंचने का प्रचलन चल पड़ा है और जिस तरह से तथाकथित दल, संगठन, या शख्सियतों ने आवरण ओढ़ सेवा कल्याण का नारा बुलंद कर रखा है। ऐसी संस्कृति के बीच हमें बहुत अधिक उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। 
क्योंकि अर्थ, अहंकार में तब्दील लोकतंत्र की बागडोर अब ठेकेदारी प्रथा में तब्दील हो चुकी है। फिर वह कोई व्यक्ति, संस्था, संगठन, दल या फिर कोई शख्सियत ही क्यों न हो। हर जगह ठेका, पेटी और मजदूरी पर मामला आ टिका है। जिसके चलते स्वतः सिद्ध शख्सियत, दल, संगठन, संस्थाओं के नाम ठेका प्रथा को मजबूत बनाने वाले स्वार्थवत लोग हम भोले-भाले महान भारतवर्ष के लोगों के बीच विकास, कल्याण, सेवा का तमगा लगा कोई न कोई अघोषित रूप से ठेकेदार ही बैठा है। जो धन लालसा बस हमें भ्रमित कर हमारी महान भावनाओं को लूटने का कार्य सत्ता सौपानों तक पहुंचने के लिए करता है। 
अघोषित रूप से स्थापित इस निर्जीव तंत्र को तोड़ने इस महान राष्ट्र के बच्चे, युवा ही नहीं, हर उस बुजुर्ग समझदार नागरिक को जागना होगा कि यह महान राष्ट्र ही नहीं, अपने स्वयं के अस्तित्व तथा अपनों को समृद्ध, खुशहाल जीवन के लिए हमें हमारी महान संस्कृति, संस्कारों, आध्यात्म, ज्ञान, विज्ञान, तकनीक को बचाना होगा। यहीं हम महान भारतवासियों का धर्म और यहीं हमारा कर्म होना चाहिए। आज इस महान राष्ट्र को यहीं सबसे बड़ी समझने वाली बात होना चाहिए।
जय स्वराज 

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