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नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और निवास स्थान 'जेल' : चंद्रशेखर आजाद

शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी में आज 23 जुलाई 2019 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्म दिवस मनाया गया! इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर महेंद्र कुमार एवं स्टाफ सदस्य तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे! डॉ.रामजी दास राठौर ने छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए बताया कि छात्र-छात्राओं के बीच में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं महापुरुषों का जन्म दिवस इसलिए मनाया जाता है जिससे कि हम महापुरुषों के जीवन दर्शन से अच्छे विचारों को अपने जीवन में उतार सके’! स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय देते हुए बताया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी एवं माता का नाम जगदानी देवी था। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे। यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे!
चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था। 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया।
उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वन्दे मातरम्‌’ और ‘महात्मा गांधी की जय’ का स्वर बुलंद किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है। आजाद जी के जीवन परिचय से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि उन्होंने अपने जीवन में सच्चाई, ईमानदारी,साहस एवं वीरता का परिचय देते हुए देश को सबसे ऊपर रखा तथा देशभक्ति एवं राष्ट्र सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया! धन्य है’ ऐसे वीर और उनके माता-पिता जिन्होंने भारत भूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया! अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इसी पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी।

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