भोपाल. शिवराज सरकार को परेशान करने वाला आरक्षण का जिन्न अब नई सरकार में मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने फिर बाहर आने वाला है। कमलनाथ के सामने अगले हफ्ते प्रमोशन में आरक्षण की फाइल पेश होगी। सामान्य प्रशासन विभाग ने इसकी रिपोर्ट तैयार कर ली है। इसमें अभी तक प्रमोशन में आरक्षण पर कोर्ट के फैसले और राज्य की अपडेट स्थिति का ब्यौरा होगा।
दरअसल, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पद संभालने के बाद चुनिंदा प्रमुख सचिवों से उनके विभाग के बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों की स्थिति तलब की है। इसमें सामान्य प्रशासन विभाग को आरक्षण का मुद्दा पेश करना है। प्रारंभिक तैयार हो चुकी है। सितंबर में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कर्मचारियों के प्रमोशन के लिए एससी-एसटी के पिछड़ेपन के लिए डाटा जुटाने की अनिवार्यता खत्म कर दी थी। कोर्ट ने एम नागराजन के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें प्रमोशन में आरक्षण अनिवार्य नहीं बताया गया था। फैसले पर बवाल मचा ही था कि विधानसभा चुनाव आ गए और सरकार इस पर कोई कदम नहीं उठा सकी है। अब कमलनाथ सरकार को इस मामले में आगे कार्रवाई करना है। मध्यप्रदेश सरकार पहले से कोर्ट में आरक्षण बरकरार रखने के पक्ष में याचिका लगा चुकी है।
शिवराज को भारी पड़ा था मुद्दा
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आरक्षण का मुद्दा भारी पड़ा था। जबलपुर हाईकोर्ट ने जब उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने का आदेश दिया तो शिवराज सरकार ने कोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण बरकरार रखने के लिए याचिका लगाई थी। इसके बाद शिवराज ने कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण को समाप्त नहीं कर सकता। इसके बाद शिवराज सरकार को यह मुद्दा भारी पड़ा था। माई के लाल के बयान के बाद ही सपाक्स ने राजनीतिक दल बनाकर चुनाव में उतरना तय किया। भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेताओं को सवर्ण समाज का आक्रोश झेलना पड़ा था।
सीएम के लिए मुश्किल हालात, दोनों पक्षों का दबाव
अब कमलनाथ के लिए इस मुद्दे पर मुश्किल हालात हैं। क्योंकि, अजाक्स और सपाक्स दोनों ही वर्ग उनसे अपने पक्ष में होने की उम्मीद कर रहे हैं। पिछले चुनाव में दोनों धड़े भाजपा सरकार से नाराज थे। सपाक्स ने अब कांग्रेस का समर्थन किया है, लेकिन उसकी अपेक्षा प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर कमलनाथ के पक्ष में होने की है। दूसरी ओर अजाक्स की उम्मीदें प्रमोशन में आरक्षण के तहत रुके हुए प्रमोशनों को लागू कराने की है। पद संभालने के बाद ही कमलनाथ ने महाधिवक्ता के पद पर भी पुरुषेंद्र कौरव की जगह पर राजेंद्र तिवारी की नियुक्ति कर दी थी। इसलिए इस मामले में कोर्ट में कानूनी लड़ाई में बदलाव आ सकता है। गौरतलब है कि मप्र में 2002 के अधिनियम के तहत प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान किया था, जिसे बाद में जबलपुर हाईकोर्ट ने 2016 में रद्द कर दिया था। तब मध्यप्रदेश सरकार इसके खिलाफ कोर्ट चली गई और तब से यह मुद्दा लगातार गरमाया हुआ है।