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भ्रष्टाचार हो रहा है और हम सो रहे हैं

शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी में भ्रष्टाचार और हम विषय पर आयोजित परिचर्चा में दिव्यांश अग्रवाल ने बताया  कि जिन व्यक्तियों की आय से अधिक संपत्ति होती है वह कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं !भ्रष्टाचार के कारण  काले धन का उदय होता है तथा सरकारी सुविधाओं में कमी उत्पन्न होती है ! हमें सरकार द्वारा लगाए गए समस्त करों का समय पर भुगतान करना चाहिए ! कल्पित श्रीवास्तव ने बताया  कि भ्रष्टाचार के लिए हम, हमारे नेता और सामाजिक परिवेश जिम्मेदार है यदि हम अपनी तरफ से थोड़ा संयम रखें और समय अनुसार काम को होने दें तो भ्रष्टाचार की जड़ें अपने आप सूख जाएंगी और अंततः देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा ! परिचर्चा के दौरान डॉ रामजी दास राठौर ने संबोधित करते हुए छात्र-छात्राओं को बताया कि देश एवं समाज में रिश्वत देने वालों व्यक्तियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, ऐसे व्यक्तियों की भी कमी हो रही है जो बेदाग चरित्र हों। विडम्बना तो यह है कि भ्रष्टाचार दूर होने के तमाम दावों के बीच भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन रहा है। ट्रांसपैरंसी इंटरनैशनल इंडिया द्वारा किए गए सर्वे ‘इंडिया करप्शन सर्वे 2018’ के मुताबिक देश में रिश्वत देकर काम कराने वालों की संख्या में 11 प्रतिशत का इजाफा हुआ है! इन विषम परिस्थितियों से कब मुक्ति मिलेगी, कब हम ईमानदार बनेंगे ? रिश्वतखोरी एवं भ्रष्टाचार से ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। क्षण-क्षण अग्नि-परीक्षा देता है। भ्रष्टाचार ऐसे ही पनपता रहा तो सब कुछ काला पड़ जायेगा, प्रगतिशील कदम उठाने वालों ने और राष्ट्र-निर्माताओं ने अगर व्यवस्था सुधारने में पूरे मनोयोग से ईमानदार एवं निस्वार्थ प्रयत्न नहीं किया तो भारत देश का सुनहरा भविष्य बर्बाद हो जाएगा! भ्रष्टाचार के कारण योग्य प्रतिभाओं का शोषण हो रहा है और अयोग्य प्रतिभागियों के चयन के कारण देश के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है!
हमें ऐसा राष्ट्रीय चरित्र निर्मित करना होगा, जिसे कोई ”रिश्वत” छू नहीं सके, जिसको कोई ”सिफारिश” प्रभावित नहीं कर सके और जिसकी कोई कीमत नहीं लगा सके। देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए शैक्षिक संस्थाओं में कार्यरत लोगों को ईमानदारी से अपना कर्तव्य निर्वहन करते हुए छात्र-छात्राओं को बेहतर मार्गदर्शन देना होगा जिससे कि छात्र-छात्राएं भविष्य में चरित्रवान एवं निष्ठावान नागरिक बन सकें!
हमारे देश में भ्रष्टाचार ही वह मुद्दा है, जिसको हर चुनाव में जरूर उठाया जाता है। शायद ही कोई पार्टी हो जो अपने घोषणापत्र में भ्रष्टाचार दूर करने का वादा न करती हो। फिर भी इस समस्या से निजात मिलना तो दूर, इसकी रफ्तार कम होने का भी कोई संकेत आज तक नहीं मिला।
आम जनता द्वारा भी भ्रष्टाचार की हदें पार कर दी गई हैं सरकारी काम तो ठीक है धार्मिक स्थलों में भी लोग रिश्वत देने से परहेज नहीं करते है’! दर्शन करने भी जाते हैं तो वीआईपी पास के माध्यम से जल्दी से दर्शन करना चाहते हैं जो कि सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का रूप है! धार्मिक स्थलों पर भी हम संयम नहीं बरतते है’! भ्रष्टाचार के खिलाफ तमाम आंदोलनों और सरकार की सख्ती के बावजूद रिश्वत के मामलों में भारतीय अपने पड़ोसी देशों को मात दे रहे हैं। अब भी दो तिहाई लोगों को सरकारी सेवाओं के बदले घूस देनी पड़ती है!
भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी से लड़ने के लिए जो नियम-कानून बनते हैं, उनका ढंग से पालन नहीं हो पाता। कारण यह कि पालन कराने की जवाबदेही उन्हीं की होती है, जिनके खिलाफ ये कानून बने होते हैं। भ्रष्टाचार उन्मूलन (संशोधन) विधेयक 2018 सरकार ने इसी साल पास कराया। इसके तहत किसी बड़ी कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस की ओर से सरकारी नीति को  तोड़ने-मरोड़ने के लिए ऑफिसरों को रिश्वत दी गई तो न केवल वे अधिकारी नपेंगे, बल्कि घूस देने वाली कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस के जवाबदेह लोग भी अंदर जाएंगे। कानून तो अच्छा है, पर यह सार्थक तभी होगा जब इसके सख्ती से लागू होने की मिसालें पेश की जाएं। बड़े औद्योगिक घराने, कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस अपने काम करवाने, गैरकानूनी कामों को अंजाम देने एवं नीतियों में बदलाव के लिये मोटी रकम रिश्वत के तौर पर या राजनीतिक चंदे के रूप में देते हैं! छोटे लेवल पर चल रहा भ्रष्टाचार और अधिक खतरनाक है क्योंकि इसका शिकार आम आदमी होता है। जिससे देश का गरीब से गरीब तबका भी जूझ रहा है। ऊपर से नीचे तक सार्वजनिक संसाधनों को गटकने वाला अधिकारी-कर्मचारी, नेता और दलालों का एक मजबूत गठजोड़ बन गया है, जिसे तोड़ने की शुरुआत तभी होगी, जब कोई सरकार अपने ही लोगों के द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करेगी !केंद्र सरकार वाकई भ्रष्टाचार दूर करना चाहती है तो उसे असाधारण इच्छाशक्ति दिखानी होगी। आज सभी क्षेत्रों में ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है जो सत्य की रेखा से कभी दाएं या बाएं नहीं चले। जो अपने कार्य की पूर्णता के लिए छलकपट का सहारा न ले! आमतौर पर लोग लोकसेवकों को रिश्वत देने के लिए बाध्य होते हैं क्योंकि लोकसेवक अनावश्यक परेशानियां बताकर भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देते हैं ! इस बुराई का सर्वाधिक असर गरीब लोगों पर पड़ता है।सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की अपनी प्रतिबद्धताओं के साथ साथ भ्रष्टाचार से निपटने के वादे भी पूरे करने चाहिए।’ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हम सबकी भी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम सभी ईमानदार बनने का निष्पक्ष भाव से प्रयास करें!

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