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मोदी-राहुल के सामने युवाओं को लुभाने की चुनौती 2019 लोकसभा चुनाव में रोजगार होगा बड़ा मुद्दा

 दिल्ली 
नई पीढ़ी के भारतीयों का राजनेताओं को सीधा संदेश है- रोजगार, रोजगार और रोजगार। 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त 13 करोड़ मतदाता पहली बार वोट करने लायक होंगे। यह संख्या जापान की कुल आबादी से ज्यादा है। संभावना है कि हर वर्ष एक करोड़ नए रोजगार सृजन के वादे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खरा नहीं उतरना अगले आम चुनाव का एक प्रमुख मुद्दा होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने इसी वादे से युवाओं का दिल जीत लिया था। अब जब आम चुनाव में महज आठ महीने बाकी बचे हैं, एक सर्वे रिजल्ट बताता है कि 29% लोग जॉब क्रिएशन के मोर्चे पर पीएम मोदी को असफल मानते हैं। जनवरी महीने में ऐसा मानने वाले 22% लोग ही थे। 
किंग्स कॉलेज, लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रफेसर हर्ष पंत ने ब्लूमबर्ग से कहा, ‘युवा आबादी वाकई प्रमुख भूमिका निभाई।’ उन्होंने आगे कहा, ‘आने वाले चुनावों में नौकरियों का मुद्दा मोदी को परेशान कर सकता है, लेकिन यह भी सच है कि वह युवाओं के बीच दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय हैं।’ 
विकासशील समाजों का अध्ययन केंद्र (CSDS) और कोनार्ड अडेन्योर स्टिफटंग की ओर से वर्ष 2016 में 6,100 लोगों के बीच किए एक सर्वे के मुताबिक रोजगार युवा भारतीयों की प्रमुख चिंता है। जब उनसे भारत की सबसे बड़ी समस्या के बारे में पूछा गया तो 18% लोगों ने बेरोजगारी जबकि 12% ने आर्थिक असामनता एवं 9% लोगों ने भ्रष्टाचार का जिक्र किया। 
सही आंकड़ों के अभाव में यह सुनिश्चित करना असंभव है कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से कितनी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हुए। हालांकि, सरकार कौशल प्रशिक्षण और लोन देकर तथा स्टार्टअप्स खड़ा करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करने में जोरशोर से जुटी है। लेकिन, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि अगस्त महीने में बेरोजगारी दर पिछले एक साल के उच्चतम स्तर 6.32% पर जा पहुंची। 
फिर भी सत्ताधारी दल बीजेपी को लगता है कि युवा मतदाता अपना और देश का भविष्य मोदी सरकार में ही देखते हैं। भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष हर्ष सांघवी कहते हैं, ‘वह (मोदी) युवाओं की उम्मीद हैं।’ 
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस बेरोजगारी से बढ़ रही निराशा और सामाजिक तनाव को भुनाने में जुट गया है। पार्टी की युवा इकाई इंडियन यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष बी वी श्रीनिवास ने कहा, ‘रोजगार के अभाव, असहिष्णुता में वृद्धि और नफरत बढ़ने से युवा आबादी सरकार से नाराज है।’ उन्होंने कहा, ‘हमलोग गांव-गांव जाकर युवाओं से मुलाकात कर रहे हैं। हमलोग अपना आधार बढ़ाने के लिए युवा नेतृत्व को मौका दे रहे हैं।’ 
2014 में 18 से 25 वर्ष की उम्र के 68% मतदाताओं ने वोट डाला था। नई दिल्ली स्थित सीएसडीएस के डायरेक्टर संजय कुमार के मुताबिक यह राष्ट्रीय औसत से 2 प्रतिशत ज्यादा था। इनका मानना है कि 2019 में भी यही होने जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘2014 में मोदी आकर्षण के केंद्र थे। मुझे नहीं लगता कि इस बार वह कोई नया वादा करेंगे।’ 
बेरोजगारी बढ़ने से सामाजिक तनाव भी बढ़ता है। इससे निवेशकों के प्रिय प्रधानमंत्री मोदी की छवि को झटका लग रहा है। हाल ही में दिल्ली में कांवड़ियों के उत्पात से दुखी उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने इसे भीड़ की तानाशाही बताते हुए कहा कि इससे देश की आबादी के अलगाव का विनाशकारी पक्ष उजागर हुआ है। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रफेसर प्रवीण कृष्ण कहते हैं, ‘बेरोजगार युवाओं की फौज वाकई चिंता के सबब होंगे।’ 
जॉब मार्केट की स्थिति कितनी भयावह है, इसकी एक झलक मार्च महीने में तब देखने को मिली जब सरकार ने रेलवे में 90 हजार नई भर्तियों का ऐलान किया तो 2 करोड़ 80 लाख लोगों ने आवेदन दे दिया। 

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