20 मार्च 2018 का दिन, सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति जनजाति से संबंधित एक केस दो जजों की बेंच के सामने था।जज थे जस्टिस गोयल व जस्टिस ललित।उन्होंने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें SC-ST(PREVENTION OF ATROCITIES) Act के मामले में त्वरित गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए डीसपी स्तर के अधिकारी द्वारा 07 दिन के अंदर जांच कर अगली कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया।
बस यहीं से जो हुआ उसने समाज में बढ़ती खाई को और चौड़ा करने का काम किया। जिसमें राजनीतिक दल से लेकर मीडिया, सिविल सोसायटी सब तरह के लोगों ने आग में घी डालने का कार्य भी किया। जिसकी प्रतिक्रिया में शांत रहने वाले व चुनाव के मुहाने पर खड़े मध्यप्रदेश में जातिगत हिंसा का जो नंगा नाच हुआ उसने समूचे भारत को स्तब्ध कर दिया। अंततः सरकार इस दबाव को झेल नहीं पायी और फिर सामाजिक न्याय मंत्री श्री थावरचंद गहलोत ने जो किया वो इतिहास में एक बार “शाह बानो” केस के रूप में प्रसिद्धि दर्ज करा चुका है। अर्थात हड़बड़ी में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को एक अध्यादेश लाकर पलट दिया गया।
अब प्रतिक्रिया देने की बारी राजनीतिक रुप से सवर्ण समाज का ठप्पा लगाये घूम रहे निर्धन, मध्यमवर्गीय लोगों की थी जो ना केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस से भी जबाब चाह रहा है और NOTA का बटन दबाने की मुहिम चला रहा है।
सवाल यही उठता है कि सरकार से क्या कहीं वही ऐतिहासिक चूक तो नहीं हुई जो राजीव गांधी जी से हुई थी? उन्होंने तो दूसरे धर्म के लोगों को दूरदर्शन पर “रामायण” शुरू करके व आयोध्या में मंदिर कपाट खोलकर मनाने का प्रयास किया था लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि वर्तमान की केंद्र सरकार सवर्ण समाज को खुश करने के लिए किस “रामायण” को शुरू करवायेगा?
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