
भोपाल एक साल में हुए नगरीय निकाय और विधानसभा उपचुनाव में भाजपा पीछे रही। चुनावी साल में भाजपा को हुआ यह नुकसान बताता है कि तीन बार सत्ता में रहने के कारण उसे एंटी इनकमबेंसी का भी सामना निश्चित तौर पर करना पड़ रहा है।
2018 में भारतीय जनता पार्टी को तीन बार बड़ा झटका लगा है। साल की शुरआत में ही प्रदेश की 19 नगरीय निकाय में चुनाव हुए थे जिनमें से भाजपा को 9 पर ही विजय मिल पाई थी। कांग्रेस भी 9 निकाय जीती, वहीं एक निकाय पर निर्दलीय ने कब्जा किया था। इसके बाद चित्रकूट, कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनावों में भी भाजपा को तगड़ा झटका लगा। ये तीनों उपचुनाव भाजपा हार गई थी।
तीसरी बार निकाय के वार्ड उपचुनाव में भी परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं रहे। बेलसिंह भूरिया विधायक बेलसिंह भूरिया अपनी सरदारपुर परिषषद को नहीं बचा पाए। यहीं राजग़़ढ परिषषद में भी भाजपा हार गई। कालूसिंह ठाकुर अपनी विधानसभा क्षेत्र की धरमपुरी और धामनौद दोनों परिषषद में हार मिली। रंजना बघेल मनावर विधायक भी अपनी परिषषद में भाजपा को जिताने में असफल रहीं। नीना वर्मा दिग्गज नेता विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा की धार नगर पालिका परिषषद में भी कांग्रेस का कब्जा हो गया।
निकायों के अलावा तीन नगर परिषषद में मौजूदा अध्यक्ष को पद से वापस बुलाए जाने का भी चुनाव ([खाली कुर्सी–भरी कुर्सी)] भी जनवरी में ही हुआ था। इसमें भी भाजपा पीछे रही। दीपक जोशी हाटपीपल्या विधानसभा क्षेत्र की करनावद नगर परिषषद अध्यक्ष कांताबाई पाटीदार भाजपा की थीं। जिन्हें दीपक जोशी पद पर बरकरार नहीं रख पाए। हजारी लाल दांगी खिलचीपुर विधायक दांगी अपनी नगर परिषषद को नहीं बचा पाए। वहां के अध्यक्ष दीपक नागर को हार का सामना करना पड़ा था। ठाकुरदास नागवंशी पिपरिया विधायक नागवंशी पचमड़ी केंट के चुनाव में पार्टी समर्थित पाषर्षद और अध्यक्ष को नहीं जिता पाए। रामलाल रौतेल अनूपपुर विधानसभा क्षेत्र की जैतहरी परिषषद पर विधायक रौतेल भाजपा को नहीं जिता पाए। यहां निर्दलीय की जीत हुई।
स्थानीय विधायक के प्रति एंटी-इनकमबेंसी
जाहिर है जहां भाजपा का जनाधार घटा है वे ज्यादातर क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य हैं। स्वाभाविक है कि कहीं न कहीं स्थानीय विधायक के प्रति एंटी-इनकमबेंसी भी इस हार के लिए जिम्मेदार है। चौंकाने वाली बात ये है कि इन क्षेत्रों में जीत के लिए कांग्रेस ने कोई खास मेहनत नहीं की थी। समग्र आकलन जरूरी पिछले पांच साल में हुए उपचुनाव में भी हमें मिलने वाले मत प्रतिशत में वृद्धि हुई है।
हमारे जनाधार का आकलन करते समय अगर स्थानीय निकाय के चुनाव को भी आधार बनाना है तो प्रदेश के सभी नगरनिगमों, सभी नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों का विश्लेषषण जरूरी है। समग्र आकलन पर पाएंगे कि हमारा जनाधार 2013 के बाद भी लगातार ब़़ढा है।- डॉ. दीपक विजयवर्गीय, मुख्य प्रवक्ता, मप्र भाजपा
2018 में भारतीय जनता पार्टी को तीन बार बड़ा झटका लगा है। साल की शुरआत में ही प्रदेश की 19 नगरीय निकाय में चुनाव हुए थे जिनमें से भाजपा को 9 पर ही विजय मिल पाई थी। कांग्रेस भी 9 निकाय जीती, वहीं एक निकाय पर निर्दलीय ने कब्जा किया था। इसके बाद चित्रकूट, कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनावों में भी भाजपा को तगड़ा झटका लगा। ये तीनों उपचुनाव भाजपा हार गई थी।
तीसरी बार निकाय के वार्ड उपचुनाव में भी परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं रहे। बेलसिंह भूरिया विधायक बेलसिंह भूरिया अपनी सरदारपुर परिषषद को नहीं बचा पाए। यहीं राजग़़ढ परिषषद में भी भाजपा हार गई। कालूसिंह ठाकुर अपनी विधानसभा क्षेत्र की धरमपुरी और धामनौद दोनों परिषषद में हार मिली। रंजना बघेल मनावर विधायक भी अपनी परिषषद में भाजपा को जिताने में असफल रहीं। नीना वर्मा दिग्गज नेता विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा की धार नगर पालिका परिषषद में भी कांग्रेस का कब्जा हो गया।
निकायों के अलावा तीन नगर परिषषद में मौजूदा अध्यक्ष को पद से वापस बुलाए जाने का भी चुनाव ([खाली कुर्सी–भरी कुर्सी)] भी जनवरी में ही हुआ था। इसमें भी भाजपा पीछे रही। दीपक जोशी हाटपीपल्या विधानसभा क्षेत्र की करनावद नगर परिषषद अध्यक्ष कांताबाई पाटीदार भाजपा की थीं। जिन्हें दीपक जोशी पद पर बरकरार नहीं रख पाए। हजारी लाल दांगी खिलचीपुर विधायक दांगी अपनी नगर परिषषद को नहीं बचा पाए। वहां के अध्यक्ष दीपक नागर को हार का सामना करना पड़ा था। ठाकुरदास नागवंशी पिपरिया विधायक नागवंशी पचमड़ी केंट के चुनाव में पार्टी समर्थित पाषर्षद और अध्यक्ष को नहीं जिता पाए। रामलाल रौतेल अनूपपुर विधानसभा क्षेत्र की जैतहरी परिषषद पर विधायक रौतेल भाजपा को नहीं जिता पाए। यहां निर्दलीय की जीत हुई।
स्थानीय विधायक के प्रति एंटी-इनकमबेंसी
जाहिर है जहां भाजपा का जनाधार घटा है वे ज्यादातर क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य हैं। स्वाभाविक है कि कहीं न कहीं स्थानीय विधायक के प्रति एंटी-इनकमबेंसी भी इस हार के लिए जिम्मेदार है। चौंकाने वाली बात ये है कि इन क्षेत्रों में जीत के लिए कांग्रेस ने कोई खास मेहनत नहीं की थी। समग्र आकलन जरूरी पिछले पांच साल में हुए उपचुनाव में भी हमें मिलने वाले मत प्रतिशत में वृद्धि हुई है।
हमारे जनाधार का आकलन करते समय अगर स्थानीय निकाय के चुनाव को भी आधार बनाना है तो प्रदेश के सभी नगरनिगमों, सभी नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों का विश्लेषषण जरूरी है। समग्र आकलन पर पाएंगे कि हमारा जनाधार 2013 के बाद भी लगातार ब़़ढा है।- डॉ. दीपक विजयवर्गीय, मुख्य प्रवक्ता, मप्र भाजपा