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अभी तो योगी जैसा कोई नहीं लग रहा है

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की प्रशासनिक क्षमता शुरू से ही सवालों के घेरे में रही है. लेकिन लॉकडाउन (Coronavirus and Lockdown) के वक्त योगी आदित्यनाथ नया रूप देखने को मिला है – अभी तो ऐसा लगता है जैसे योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी और एनडीए के सारे मुख्यमंत्रियों को पछाड़ दिया है.
कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन (Coronavirus and Lockdown) की चुनौतियों ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का नया रूप पेश किया है. यूपी (ttar Pradesh) के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक सफर प्रशासनिक अनुभव की कमी से लेकर उत्तम प्रबंधन की मंजिल के करीब पहुंचने वाला है, ऐसा लगता है.

लॉकडाउन में भी एनकाउंटर वाला अंदाज
जो मुख्यमंत्री कल तक सिर्फ ठोकने की बात करता रहा हो छोटी छोटी चीजों पर गौर करने लगे. लोगों की जरूरतों पर ध्यान देने लगे. उसे इस बात की भी फिक्र हो कि ऐसा नहीं हुआ तो वैसा हो सकता है. ऐसा नहीं करना है क्योंकि वैसा हो जाएगा – ये सब वे सबक हैं जो काम करने से ही मिलते हैं और फिर काम को अंजाम देकर ही उसे कर पाने का माद्दा और महारथ दोनों ही हासिल हो पाती है.

योगी आदित्यनाथ ने कदम कदम पर साबित किया है कि वो काफी दिनों से काम सीख रहे थे – और हाल फिलहाल तो तेजी से सीखा भी है और परफॉर्म भी किया है.

1. लाखों मजदूर आने वाले हैं: योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को बताया है कि अगले दो महीने में दूसरे राज्यों से 5-10 लाख मजदूरों के पहुंचने की संभावना है. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को आने वाले मजदूरों के जिले में शेल्टर होम बनाने के निर्देश दिये हैं – साफ साफ निर्देश है कि जो मजदूर जहां के रहने वाले हैं उनके लिए सेंटर उनके लिए शेल्टर होम घरों के आस पास ही बनाये जायें.

2. लॉकडाउन जारी रहेगा अगर: योगी आदित्यनाथ का अधिकारियों को साफ साफ निर्देश है कि अगर किसी भी जिले में एक भी केस हुआ तो वहां लॉकडाउन खोलना मुश्किल हो जाएगा. लिहाजा हॉट-स्पॉट और कंटेंमेंट पर पूरी सख्ती रहे और लॉकडाउन प्रोटोकॉल पर पूरी तरह अमल हो.

3. सोशल डिस्टैंसिंग कायम रहे: योगी आदित्यनाथ ने सोशल डिस्टैंसिंग हर हाल में कायम रखने के लिए मंडियों को खुले मैदान में शिफ्ट करने का सुझाव दिया है. साथ ही, अधिकारियों पर ये भी जिम्मेदारी है कि मंडियों की तरह सब्जी मंडी और ऐसी दूसरी जगहें जहां भीड़ की संभावना बनती हो – वो हर उपाय किया जाये जिससे से सोशल डिस्टैंसिंग बरकरार रहे.

4. क्वारंटीन तोड़ा तो जेल होगी: योगी आदित्यनाथ की साफ साफ हिदायत है कि क्वारंटीन सेंटर से कोई भागने न पाये – अगर कोई भागता है तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाये.

5. सीमाएं सील रहेंगी: उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी मुख्यमंत्री ने 30 जून तक सील रखने का आदेश दिया है – और कड़ी निगरानी रखनी है कि किसी तरह की घुसपैठ न हो पाये.

6. सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं होंगे: मुख्यमंत्री की तरफ से सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि 30 जून तक प्रदेश में किसी भी सार्वजनिक और सामूहिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जाएगी.

अभी तो योगी जैसा कोई नहीं लग रहा है
बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी एनडीए कोटे से ही आते हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने लॉकडाउन में ऐसे ऐसे काम कर डाले हैं कि बिहार के लोगों को जबाव देते नहीं बन रहा है. योगी आदित्यनाथ के एक्शन से मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भी दबाव में आ चुके हैं. मध्य प्रदेश के मजदूरों को बाहर से लाने में जुटना पड़ा है. नीतीश कुमार का तो ये हाल है कि जब बिहार के लोग दिल्ली से लौटना चाहते हैं तो कहते हैं लॉकडाउन फेल हो जाएगा जहां हैं वहीं बने रहें. कोटा के छात्रों की बात होती है उनको सम्पन्न घरों का बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं. चाहे वो चमकी बुखार से आंखों के सामने दम तोड़ते बच्चों के मां-बाप हों या पटना में बाढ़ से बेहाल लोग – नीतीश कुमार का वही रवैया आज भी कायम है.

योगी आदित्यनाथ कोटा में फंसे यूपी के बच्चों को बसें भेज कर सिर्फ बुलाये ही नहीं, क्वारंटीन में रखने के बाद उनके घर भिजवा चुके हैं – और अब अफसरों को हिदायत दी है कि वे फोन करके उनका हालचाल भी लें. मुख्यमंत्री का आदेश है कि उत्तर प्रदेश के हर जिले में शिक्षा विभाग एक टीम गठित करें और कोटा से वापस लौटे छात्र-छात्राओं से बातचीत कर उनका हालचाल जानें – जाहिर है हालचाल के दौरान किसी तरह की दिक्कत का पता चला तो उसे दूर भी किया ही जाएगा.

अभी तो ऐसा लगता है जैसे बिप्लब कुमार देब बीजेपी के सबसे बेस्ट मुख्यमंत्री बन चुके हैं. ये सही है कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री राज्य को कोरोना मुक्त कराने में बाजी मार ले गये, लेकिन कहां त्रिपुरा और कहां उत्तर प्रदेश.

सच में – काम बोलता है!
उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुई वैश्विक महामारी से जंग को लेकर सरकार के आला अफसरों की मीटिंग चल रही होती है – और तभी दिल्ली एक बुरी खबर आती है. भरी मीटिंग में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मालूम होता है कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे.

योगी आदित्यनाथ दो मिनट का मौन रख अपने पिता को श्रद्धांजलि देते हुए

जो शख्स हर वक्त आत्मविश्वास से भरपूर और कड़क मिजाज वाला नजर आता है – आंसू नहीं रोक पाता. आंसू छलक जाते हैं. वो संन्यासी जरूर है, लेकिन हाड़-मांस से बना इंसान ही है. घर बहुत पहले ही छूट चुका है – लेकिन पिता तो पिता ही होता है – आंसू कैसे रुकेंगे. वो पिता जिसने पाल पोस कर गुरु को सौंप दिया. कलेजे के टुकड़े पर सारा हक किसी और को दे डाला. गुरु तो पहले ही चला जाता है अपनी गद्दी सौंप कर – अब तो वो पिता भी दुनिया को अलविदा कह देता है.

काम पहले है. दुनियादारी बाद में. वो संन्यासी बड़ा ही भावुक एक पत्र लिखता है. क्षमा भाव के साथ बाद में आने के वादे के साथ कहता है – अंत्येष्टि में नहीं बल्कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद आ पाऊंगा. जिम्मेदारियों ने जकड़ रखा है. खुद ही मिसाल भी पेश करनी है ताकि दूसरे भी सबक ले सकें.

योगी आदित्यनाथ ने से अब वे काफी सबक सीख लिये हैं जिनको लेकर उनकी क्षमताओं पर उंगली उठायी जाती रही है.

कानून व्यवस्था से लेकर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों तक में योगी आदित्यनाथ की भारी फजीहत हुई. कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद की करतूतों ने तो कोई कसर बाकी रखी नहीं. बात बात पर सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर देते रहे.

छवि ऐसी बनती है कि एनकाउंटर के अलावा योगी आदित्यनाथ को कुछ आता ही नहीं. कभी सहयोगी रहे ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता खुलेआम इल्जाम लगाते रहे कि अफसर जैसे चाहते हैं नचाते हैं – क्योंकि योगी आदित्यनाथ को खुद तो कुछ आता नहीं.

तभी कोरोना वायरस से यूपी के लोगों को बचाने की चुनौती आ जाती है – और योगी इसे सबसे बड़े चैलेंज के तौर पर लेते हैं.

देश में संपूर्ण लॉकडाउन लागू होते ही अचानक मालूम होता है कि यूपी के लोग दिल्ली में सड़कों पर आ गये हैं – रातों रात बसों का इंतजाम करना पड़ता है. सबको दिल्ली बॉर्डर से लाकर क्वारंटीन करना और फिर उनके घर भेजना – आसान है क्या? तभी तो कट्टर विरोधी भी लोहा मानने लगे हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का ये ट्वीट तो नमूना भर है.

ये नये मिजाज के योगी हैं
योगी आदित्यनाथ की छवि पहले एक ऐसे हिंदूवादी नेता भर की रही, जिसकी राजनीति लव-जिहाद और घर वापसी जैसी मुहिम युवा वाहिनी जैसे संगठन के इर्द-गिर्द सिमटी हुई होती है – और जेल भेज दिये जाने पर वो भरी संसद में रोने लगता है.

एक ऐसा नेता जिसके पास एक बड़े मंदिर के महंत से इतर कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं होता – और जब केंद्र में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनती है तो 5 बार का सांसद होकर भी उसे एक जूनियर मंत्री तक नहीं बनाया जाता.

यहां तक कि जब उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य का मुख्यमंत्री बनता है तो उसकी मदद के लिए सहायकों और सलाहकारों की पूरी फौज लगानी पड़ती है. सरकार चलाने के लिए दो-दो डिप्टी सीएम और मीडिया में चुनावी रैली जैसा भाषण या राष्ट्र के नाम हिंदू नेता का संदेश न दे बैठे इसके लिए प्रवक्ता रखे जाते हैं – जिनका काम कैबिनेट की मीटिंग के बाद ब्रीफिंग करना होता है.

साल भर बीतते बीतते योगी आदित्यनाथ के अपने ही इलाके गोरखपुर के अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हो जाती है. मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी ही लोक सभा की सीट पार्टी की झोली में नहीं डाल पाता – और बाकी दो ऐसी ही सीटें हाथ से चली जाती हैं. बदला लेने के लिए आम चुनाव तक इंतजार करना पड़ा है और इंतजार का फल भी मीठा ही मिलता है.

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