भोपाल-पहले से ही बुरे आर्थिक दौर से गुजर रही राज्य सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। सूत्रों के मुताबिक 15वां वित्त आयोग राज्यों के कर्ज लेने की सीमा घटाने पर काम कर रहा है। आयोग राज्य की कुल जीडीपी के ढाई प्रतिशत तक कर्ज लेने का प्रावधान करने पर विचार कर रहा है। यदि ऐसा होता है तो राज्य सरकार के कर्ज लेने की सीमा आठ हजार करोड़ रुपए कम हो सकती है।
वित्तीय नियंत्रण एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) एक्ट के तहत अभी मप्र सरकार कुल जीडीपी का साढ़े तीन प्रतिशत तक बाजार से कर्ज ले सकती है। राज्य सरकार की जीडीपी अभी लगभग आठ लाख करोड़ रुपए है। इस लिहाज से राज्य सरकार करीब 28 हजार करोड़ रुपए बाजार से कर्ज ले सकती है।
यदि कर्ज लेने की सीमा साढ़े तीन प्रतिशत से घटाकर ढाई प्रतिशत की जाती है तो राज्य सरकार की कर्ज लेने की सीमा 20 हजार करोड़ रुपए रह जाएगी। इससे सरकार का आर्थिक संकट और बढ़ जाएगा, क्योंकि राज्य सरकार कर्ज लेकर ही खर्चे पूरे कर रही है। 15वां वित्त आयोग इस साल अक्टूबर में अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को सौंपेगा।
हालांकि अगले वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार की कर्ज लेने की सीमा नहीं घटेगी, क्योंकि वित्त आयोग की सिफारिशों को वित्तीय वर्ष 2020-21 से लागू किया जाएगा। अगले एक साल में भी राज्य सरकार की आय के साधन बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना कम ही है, इसलिए कर्ज लेने की सीमा घटने से सरकार की मुश्किलों में इजाफा होना स्वाभाविक है। अभी राज्य सरकार के ऊपर करीब एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है।
इस साल पांच हजार करोड़ रुपए का कर्ज और ले सकती है सरकार
अधिकारियों के मुताबिक राज्य सरकार 31 मार्च तक पांच हजार करोड़ रुपए का कर्ज और ले सकती है। अभी कर्जमाफी और अन्य योजनाओं की वजह से सरकार का खर्च अनुमान से ज्यादा बढ़ गया है। सरकार अभी पूरे साल के बजट को रेवेन्यू सरप्लस में दिखाने की कोशिश कर रही है।
अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा फर्क
15वां वित्त आयोग यदि कर्ज लेने सीमा घटाने में सफल होता है तो इसका असर सिर्फ मप्र ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना सहित कई अन्य राज्य वित्तीय संकट में चल रहे हैं और अपनी लिमिट के तहत कर्ज लेकर जैसे-तैसे खर्च चला रहे हैं।
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