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आंखें नहीं पर हौसले बुलंद पैरा एशियन गेम्स में खेलेगी

भोपाल  जानकी बाई नेत्रहीन है…परिवार से बेहद गरीब…माता-पिता मजदूरी करते हैं। खुद बकरियां पालती है। रहने के लिए झोपड़ीनुमा कधाा घर है। प्रदेश की इस पैरा जूडो खिलाड़ी की यह कहानी युवाओं के लिए मिसाल है क्योंकि इन बातों को जानकी ने दरकिनार कर दिया है। उसके हौसले के आगे लाचारी बौनी साबित हुई। जबलपुर (सिहोरा) के पास कुर्रे गांव में रहने वाली जानकी ने जकार्ता में होने वाले पैरा एशियन गेम्स की भारतीय जूडो टीम में जगह बनाई है।
दोनों आंखों से न देख पाने के बावजूद जानकी ने अपनी इस कमजोरी को कभी हावी नहीं होने दिया। जानकी पिछले एक महीने से लखनऊ में भारतीय जूडो टीम के ट्रेनिंग कैंप में प्रशिक्षण हासिल कर रही थी।
जकार्ता में चल रहे एशियन गेम्स के ठीक बाद अक्टूबर से पैरा एशियन गेम्स शुरू होंगे। इन खेलों के लिए देश की 5 लड़कियों में से मप्र से 2 लड़कियों ने क्वालीफाई किया है। इनमें भोपाल की पूनम शर्मा और जबलपुर की जानकी बाई शामिल हैं।
जानकी 95 प्रतिशत नेत्रहीन (दिव्यांग) है। जानकी ने बताया कि माता-पिता मजदूरी करते हैं। जीवन यापन का कोई जरिया नहीं था तो घर में 3 बकरियां भी पाल लीं। इन्हीं के जरिए थोड़ा बहुत खर्चा निकल आता है। जूडो की ट्रेनिंग के खर्चे के लिए पैसे नहीं थे तो ब्लाइंड जूडो एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने मदद की।
चंदा करके जा सकी थी विदेश
जानकी ने बताया कि पिछले साल उसका चयन अंतरराष्ट्रीय इवेंट के लिए हुआ था। इतने पैसे नहीं थे कि विदेश जा सके। न सरकार ने साथ दिया न प्रशासन ने। बमुश्किल एक लाख रुपए का चंदा किया और विदेश जा सकी। एसोसिएशन ने मार्गदर्शन दिया। ट्रेनिंग प्रोग्राम की व्यवस्था कराई।
जानकी ने बताया कि 5 साल की थी तब उसकी आंखों की रोशनी चली गई। स्कूली शिक्षा 5वीं तक ही हासिल कर सकी। भारत की ओर से खेलने के बावजूद आज भी घर की स्थिति जस की तस है। जानकी 2 अंतरराष्ट्रीय और 3 राष्ट्रीय पदक जीत चुकी है। अभी राष्ट्रीय कोच अकरम शाह जानकी को ट्रेनिंग दे रहे हैं।
जानकी ने बताया कि 2014 से वह जूडो का प्रशिक्षण ले रही है। 2017 में भी उसने अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बावजूद सरकार से कोई विशेष मदद नहीं मिली। जानकी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अपील की है। सरकार प्रदेश के खिलाड़ियों को विक्रम और एकलव्य अवॉर्ड देती है।
अवॉर्ड में राशि देती है, नौकरी देती है। लेकिन हम जैसे खिलाड़ी जो विदेश में जाकर भारत की ओर से पदक जीतते हैं उनकी कोई मदद नहीं करती। जानकी कहती हैं ‘मैं मामाजी (मुख्यमंत्री) से अपील करती हूं कि हम जैसे खिलाड़ियों के बारे में भी कोई पॉलिसी बनाएं। दुखी मन से जानकी ने बताया कि अब वह भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने जा रही है लेकिन अभी तक प्रशासन का कोई भी नुमाइंदा उससे मिलने या उसे बधाई तक देने नहीं पहुंचा है।

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