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वाराणसी: लॉकडाउन से गंगा नदी में पॉल्यूशन भी डाउन, पानी हुआ साफ

लॉकडाउन के कारण जहां देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है, वहीं भारत के धार्मिक-सांस्कृतिक अर्थशास्त्र की प्रमुख आधार गंगा के जल की गुणवत्ता तेजी से सुधर रही है। उत्तराखंड से गंगासागर तक गंगा निर्मल हुई हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि काशी में अस्सी से वरुणा संगम के बीच भी गंगाजल की गुणवत्ता में 30 से 35 फीसदी तक इजाफा हुआ है। इस सबसे प्रमुख कारण कल-कारखानों के साथ घाटों पर स्नान और अन्य गतिविधियों का बंद होना है।

गंगाजल में फिक्कल कोलीफार्म की मात्रा का स्तर प्रति सौ एमएल में 15 हजार से घट कर 11 हजार तक आ गई है जबकि पीएच का स्तर 3.5 से अधिक हो गया है। लॉकडाउन से पहले गंगा जल के परीक्षण में यह मात्रा काफी कम थी। गंगा जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा प्रति लीटर तीन एमजी तक पहुंच गई है। यह मात्रा एक माह पहले अस्सी संगम पर शून्य से भी नीचे चली गई थी। बीओडी ( बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) एक एमजी प्रति लीटर हो गई है।

पर्यावरणविद प्रो बीडी. त्रिपाठी का कहना है कि अनेक कोशिशों के बाद भी सर्वाधिक कानपुर में औद्योगिक गंदगी गंगा में मिलती है। अविरलता में कमी के कारण गंगा में उसका दुष्प्रभाव काशी तक दिखता है। लॉकडाउन की वजह से औद्योगिक कचरे के उत्सर्जन में कमी आई है।

वहीं, काशी में रामनगर से शिवाला घाट के बीच कई स्थानों से प्रदूषित जल गंगा में मिलता है। इन दिनों रामनगर की औद्योगिक इकाइयों से लेकर कपड़ा रंगाई के कारखाने बंद हैं। उसका सीधा असर गंगा पर पड़ रहा है। जल में प्रदूषण की मात्रा स्वाभाविक रूप से कम हो गई है। जल की गुणवत्ता में सुधार जलीय जीवों के लिए भी लाभप्रद होगा।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रीयल टाइम वॉटर मॉनिटरिंग भी कराता है। गंगा के पूरे प्रवाह पथ में 36 स्थानों पर मॉनीटरिंग सेंटर बने हैं। उनमें 27 स्थानों पर गंगाजल पूर्ण रूप से नहाने के योग्य हो गया है। लॉकडाउन के पहले सिर्फ छह स्थानों पर ही गंगाजल नहाने लायक था।

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