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ये तो अभी ट्रेलर है फिल्म तो आना बांकी है मेरे दोस्त – संजय बेचैन

*जिम्मेदार सरकार का ये अपराध क्षम्य तो नहीं…*
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*ये तो हद है साहब- ये तो अभी ट्रेलर है फिल्म तो आना बांकी है मेरे दोस्त…*
-सीएम के सामने समारोह पूर्वक लगा कोरोना गाइड लाइन को पलीता
– सीएम के जाते ही एसपी से लेकर डीएम और आला अफसर कोरोना मेेंं घिरे
*खरी खरी /संजय बेचैन*
इस बात में दो राय नहीं कि नियम और कानून आम आदमी के लिए होते हैं खास लोगों को नियम कानून की परिधि से ऊपर माना गया है। चुनाव नेताओं के लिए अहम हैं फिर चाहे मतदान के लिए मतदाता रहें न रहें कोई फर्क नहीं पड़ता। चुनावी हालात क्यों बने यह भी सर्वविदित है। एक छोटी सी नजीर देखिए प्रदेश के शिवपुरी जिले में दो सीटों पर उप चुनाव होना है ऐसे में विकास की बरसात यहीं होने जा रही है, यही स्थिति प्रदेश के 27 विधानसभा क्षेत्रों में हैं, शुक्रवार को करेरा और पोहरी में हुए राजनीतिक जलसों के दौरान जिस तरह का परिदृश्य दिखाई दिया वह अपने आप में यह साबित कर रहा है कि कोरोना को लेकर सरकार और सरकार के मुखिया कतई गंभीर नहीं हैं। प्रशासन के अधिकारियों पर दोषारोपण इसलिए बेकार है क्योंकि जब विधान के निर्माता ही नियम कानूनों की धज्जियां बिखेर रहे हों तो अधिकारी कर्मचारियों की क्या बिसात कि वह उन्हें रोकने टोकने का दु:स्साहस दिखा सकें। कोरोना महामारी जब चरम पर है शंख झालर और थालियां बजाने के बावजूद देश इस मामले में विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है तब ऐसी लापरवाही वह भी कुर्सी की खातिर समझ से परे है। छोटे से जिले शिवपुरी में डेथ रेट के साथ साथ पॉजिटिविटी रेट भी बढ़ा हुआ है इन परिस्थितियों में हजारों की प्रायोजित भीड़ जुटाना जनता की जान से खिलवाड़ नहीं तो और क्या कहा जा सकता है। इसके साईड इफेक्ट सबसे पहले और महज 24 घण्टे से भी कम समय में सामने आना शुरु हो गए शिवपुरी के डीएम अक्षय कुमार, उनकी पत्नि, बच्चे तक पॉजिटिव आ गए, पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह चंदेल भी कोरोना संक्रमण का शिकार हो गए। टीआई भी संक्रमण की जकड़ में आ गए। यह सब 24 घण्टे के भीतर हुआ। बड़े अधिकारियों को तो बेहतर स्वास्थ्य कबच मिल जाएगा कुछ चिरायु और एम्स के लिए रवाना भी हो गए मगर 20 हजार से अधिक की भीड़ जो राजनैतिक जलसे के लिए जुटाई गई उसमें कोई एक चेहरा भी ऐसा नहीं जो बड़े अस्पताल की सुविधा भोग कर अपनी जान बचा सके। इनमें से कितने संक्रमण का शिकार हुए यह डाटा सामने आना अभी शेष है क्योंकि वे स्पेशल की श्रेणी में नहीं आते। ये लोग तो परीक्षण के स्तर पर ही दुत्कारे जाने वाले हैं यह भीड़ है जो बेचेहरा हुआ करती है इसका मरना जीना कीड़े मकोड़ों की श्रेणी में रखा जाता है,ये सिर्फ आंकड़े होते हैं। कोरोना के नाम पर सोशल डिस्टेंसिंग अब सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई है।

उपचुनाव निकट है ऐसे में जनता की चिंता छोड़ कुर्सी की चिंता में नेता नगरी जुट गई है। कांग्रेस हो या भाजपा किसी को इस बात का ख्याल नहीं कि उनके ये भीड़ जुटाऊ आयोजन हजारों लोगों के लिए मुसीबत का सबब बन रहे हैं। ऐसे नियम कानूनों को बनाने का ही क्या फ ायदा जब उनका अनुपालन इनको बनाने वाले लोग ही नहीं कर पा रहे। शुक्रवार को जो कुछ शिवपुरी में हुआ वैसा 27 सीटों पर सब दूर दिखाई देगा और दे भी रहा है। इस तरह के जलसे से तो और भी साफ हो गया कि कोरोना पर शासन या प्रशासन का कोई फोकस नहीं है, लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। शिवपुरी में सरकारी स्तर से भीड़ जुटाने के जितने भी प्रयास हो सकते थे वह इन राजनीतिक आयोजनों की खातिर कर डाले गए, भीड़ जुटी और दम से जुटी, नेता भीड़ को देख आत्ममुग्धता में खो गए, बड़े.बड़े दावे हुए, करोड़ों के वादे हुए, आयोजन स्थलों पर ऐसा कौन सा आला अफसर या मंत्री मौजूद नहीं था जो इस भीड़ को रोकने में सक्षम न हो, क्या उनकी नजर में यह सारा मंजर कैद नहीं हुआ? प्रदेश के पुरोधाओं ने अपनी आंखों के सामने इस कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ते नहीं देखीं? क्या किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई कार्रवाई संस्थित की जा सकी, यदि नहीं तो फिर ऐसे प्रावधानों का ही क्या फ़ायदा, इन्हें अस्तित्व से ही मिटा दिया जाना चाहिए ताकि यह प्रशासनिक मशीनरी के मार्फ त असहाय लोगों के शोषण का जरिया ना बने। याद आते हैं शहर के चौराहों के वे दृश्य जहां चेहरे पर गमछा ओढ़ कर जाने वालों को चिन्हित कर उनके चालान इसलिए किए जाते हैं कि चेहरे पर मास्क क्यों नहीं ओढ़ा। बंद होनी चाहिए दोहरी व्यवस्था, यहां जनता कोरोना के सामने पस्त पड़ी है। कई लोगों की जान जा चुकी है, कई क्वॉरेंटाइन है और तमाम जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहे हैं लेकिन इन सबसे परे कोविड.19 गाइडलाइन की समारोह पूर्वक धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जो किसी को दिखाई नहीं देती। आने वाले कल में तीज त्योहारों पर जुटने वाली भीड़ पर सख्ती दिखाकर जनाक्रोश को ही बढ़ावा दिया जाएगा। प्रदेश में गणेश उत्सव नहीं मनाने दिया गया, पंडाल नहीं लगाने दिए गए क्योंकि उसमें जो भीड़ जुटती वह कोरोना प्रूफ नहीं होती, गणपति विसर्जन भी कोरोना की दुहाई देकर रोक दिया गया। लोगों ने गणेश प्रतिमाओं का ऐसे विसर्जन किया जैसे वह कोई नेक काम नहीं बल्कि चोरी कर रहे हों, इसके ठीक विपरीत राजनीतिक पंडाल कल भी आज भी सज रहे हैं। इन पाण्डालों में भीड़ की कोई लिमिटेशंस नहीं और अपराध बोध का तो सवाल ही नहीं उठता उल्टा छाती चौड़ा कर समारोह पूर्वक सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां यहां चौड़े में उड़ाई जा रही हैं। इसके दुष्परिणाम भी सामने आना शुरू हो गए हैं। इससे पहले ग्वालियर में हुई रैली और विरोध प्रदर्शनों में से लौटे तमाम नेता पॉजिटिव पाए गए और अब सरकारी इंतजामों में जुटी मशीनरी से संबद्ध अधिकारी कर्मचारी कोरोना संक्रमित होना शुरू हो गए हैं। यहां नैतिकता सिर्फ भाषणों में पेलने की सामग्री भर रह गई है। हकीकत में नैतिकता अब ढूंढे नजर नहीं आती खासकर मामला जब वीवीआइपी और राजनेताओं से जुड़ा हो। प्रदेश कोरोना की मार से पहले ही दम तोड़ रहा है अब रही सही कसर यह उपचुनाव पूरी करा देंगे। शुक्रवार को हुए यह आयोजन तो ट्रेलर मात्र हैं इस तरह के सैकड़ों आयोजनों की बुनियाद अब रख दी गई है, जिसकी फि ल्म अब सामने आना बाकी है। अब तो किसी सही बात को कहना भी गुनाह सा लगता है क्योंकि किसे कब कौन सा सच चुभ जाए राम जाने। याद आती हैं दुष्यंत की ये पंक्तियां-
*मत कहो आकाश मेें कोहरा घना है।*
*यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है*।।*

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